पत्रकार खतरे में है
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कभी शेर की तरह दहाड़ता था
आज आवाज खतरे में है,,,
आज पूरा समाज खतरे में हेै,,,,,,
लहू भरकर कलम में
कभी देश सीचा जिसने,,,,,,
देखो देखो आज वही
पत्रकार खतरे में है,,,,,,
उबलते हुए लहू का
अहसास लिखा जाएगा.,,,,
जो शक्स आम है
वो भी खास लिखा जाएगा.,,,,,
पत्रकारों पर साजिशन
जुल्म ना करे ये सिस्टम.,,,,
वरना उठेगी जब कलम
तो इतिहास लिखा जाएगा.,,,,
छोड़कर प्रेमगीत,
वैराग लिखेगी,
इतिहास बदलने को
नया राग लिखेगी,,,
होलियाँ जलने लगी,
सड़क पर,कलमकारों की,,,,
ये कलम जब जलेगी,
तो फिर आग लिखेगी,,,,,
बसंती चोले पे,फिर ये,
लहू के दाग लिखेगी,,,,,
ये कलम जब जलेगी,
तो फिर आग लिखेगी,,,,
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