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03 मार्च 2023

हवाओं की क़सम जो (पहले) धीमी चलती हैं

सूरए अल मुरसलात मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी पचास (50) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
हवाओं की क़सम जो (पहले) धीमी चलती हैं (1)
फिर ज़ोर पकड़ के आँधी हो जाती हैं (2)
और (बादलों को) उभार कर फैला देती हैं (3)
फिर (उनको) फाड़ कर जुदा कर देती हैं (4)
फिर फरिश्तों की क़सम जो वही लाते हैं (5)
ताकि हुज्जत तमाम हो और डरा दिया जाए (6)
कि जिस बात का तुमसे वायदा किया जाता है वह ज़रूर होकर रहेगा (7)
फिर जब तारों की चमक जाती रहेगी (8)
और जब आसमान फट जाएगा (9)
और जब पहाड़ (रूई की तरह) उड़े उड़े फिरेंगे (10)

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