हां मैं ठूठा पेड़ हूं
सब अलग हो गए हैं मुझसे
न कोई हलचल ,न कोई शोर
न कोई हंस ,न कोई मोर
मेरे मन की भीत पर बैठा ,
एक काला कौआ
कांव कांव करता हुआ;
मुझे एहसास दिलाता है मेरे अस्तित्व का
होकर भी न होने वाले
व्यक्तित्व का ।
बुनी हुई जिन्दगी की
उधेड़ हूं
मैं मन से अधेड़ हूं
हां मैं ठूठा पेड़ हूं ।
कंचन तिवारी कशिश
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