साहित्य : कविता ...................5
मजबूरी बचपन की........
शिखा अग्रवाल ( नवोदित )..............
उड़ने को उत्सुक,
आसमां छू लेने को आतुर,
बेताब निगाहें घोंसले से झांकती जिसकी
वो एक थी चिड़िया।।
दाना चुगना न आता था,
मां चुगती एक - एक दाना,
मां उड़ती,बैठती, फिर उड़ती
कशमकश रोज़ करती,
चोंच खोल वो न पाती थी ,
एक थी चिड़िया।।
रोज़ पेड़ों से संगीत सिखती थी,
हवाओं का नृत्य देखती थी,
कोयल की कूक उसे मधुर लगती थी,
बैल की घंटी वीणा की तान लगती थी,
मन था थिरकने को आतुर,,
अधखुले पंखों को था पतंग बनने का इंतजार,
लेकिन बेबसी इनकी जता गई,कि वो
एक थी चिड़िया।।
ओस की बूंदें महसूस करना चाहती थी,
थोड़ी धूप भी सेकना चाहती थी,
लोहड़ी की आग देखना चाहती थी,
तिल का दाना भी चुगना चाहती थी,
उन्मादित था पर मजबूरी थी बचपन की,
एक थी चिड़िया।।
दोस्तों की चहल - पहल आनंदित करती,
पास वाले पेड़ की रोनक मानो कहा करती,
चलो सब मिलकर बेर तोड़ें -
चलो किसी के परिंडे का नीर पी लें,
चलो किसी खेत में अठखेलियां कर आयें,
मन मद- मस्त मदहोश था,
पर उम्र की बेवजह बेरूखी देखिए
की वो ,एक थी चिड़िया ।।
शिखा अग्रवाल
भीलवाड़ा, राजस्थान
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