साहित्य : चंद अश'आर............9
- अनुज कुमार कुच्छल
(1)लेकर अंगड़ाई चाँद ने रात मुझ से यूँ कहा,
चलो अब सो जाएँ, के सुबह हुई जाती है।
(2) किस कदर जब्त है उस शख्स को अपने जी पे,
(3) जब भी बेबस निगाहों से आवाज़ दी साहिल ने मुझे,
मेरी कश्ती डगमगाई समंदर की मौज़ देखकर।
(4)तमाम उम्र हम यूँ ही लडखडाते फिरेंगे,
हमे सहारा देने हाथ जो उठे, बंधे हुए थे।
-अनुज कुच्छल
सीनियर सेक्शन इंजीनियर, रेलवे मंडल कोटा
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