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07 फ़रवरी 2022

कुछ लोग गुलाब की कहानी जहांगीर से लेकर टॉमस से गुलामी से जोड़ कर बताते है , संघ मानसिकता से जुड़े लोग , लेकिन

 

कुछ लोग गुलाब की कहानी जहांगीर से लेकर टॉमस से गुलामी से जोड़ कर बताते है , संघ मानसिकता से जुड़े लोग , लेकिन
गुलाब से हिंदुस्तान बना ‘गुलाम’:जहांगीर को टॉमस ने गिफ्ट देकर बनाई फैक्ट्री, मुगल बेगमें थीं फूल की दीवानी, नूरजहां इसके इत्र में नहाती थी
दिनेश मिश्र
गुलाब है तो बस एक फूल, मगर यह कभी सल्तनत जीतने में काम आया तो अक्सर दिल। वैसे तो भारत में गुलाब के आने की कहानी सदियों पुरानी है, मगर इससे जुड़ी दिलचस्प कहानियों की महक किसी परीकथा से कम नहीं। 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे है, उससे पहले आज रोज डे के मौके पर अपनी खूबसूरती और खुशबू से महकाने वाले गुलाब के रोचक सफर के बारे में बताएंगे।
आपको पता है, एक गुलाब देकर अंग्रेजों ने मुगलों से हिंदुस्तान की सल्तनत 'जीत' ली थी। इसके बाद ही गुलाब कैसे हिंदुस्तान में प्रेम का प्रतीक बनता चला गया। कम समय में ही इस फूल का रुतबा ऐसा हो गया था कि मुगल राजकुमारियां बिना गुलाब के पानी के हमाम में नहाने के लिए उतरती ही नहीं थीं। आज आलम यह है कि फिल्मों से लेकर आम आदमी के छोटे से घर में भी सुहागरात की सेज बिना गुलाबों के महकती नहीं है।
बाबर ईरान से ऊंटों पर लादकर लाया था गुलाब के फूल
मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाले चंगेज खान और तैमूर के वंशज जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर को गुलाब के फूल बेहद पसंद थे। इतने पसंद कि उसने हिंदुस्तान में ईरान से ऊंटों पर लदवाकर गुलाब के फूल मंगवाए थे। यहां तक कि उसने तुर्की में लिखी अपनी आत्मकथा ‘तुजुके बाबरी’ में इनका बखूबी जिक्र किया है और गुलाब से ही दिल की भावनाओं का इजहार किया।
बाबर को गुलाब से इतना लगाव था कि वह अपनी कविताओं में भी दिल की भावनाओं का जिक्र करने में करता था।
बाबर को गुलाब से इतना लगाव था कि वह अपनी कविताओं में भी दिल की भावनाओं का जिक्र करने में करता था।
यहां तक कि अपनी 4 बेटियों के नाम भी उसने गुलाब के नाम पर ही रखे। गुल चिहरा (गुलाब जैसे गाल), गुलरुख (गुलाब जैसा चेहरा), गुलबदन (गुलाब जैसा शरीर) और गुलरंग (गुलाब जैसा रंग)। ईरान की भाषा फारसी है, जहां गुल का मतलब गुलाब होता है।
जहांगीर को गुलाबों से बेहद प्यार था। उसे फूलों की चित्रकारी भी बेहद पसंद थी।
जहांगीर को गुलाबों से बेहद प्यार था। उसे फूलों की चित्रकारी भी बेहद पसंद थी।
एक फूल से ही सलीम ने अनारकली का दिल जीता था
बाबर के बेटे जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर को भी फूलों से प्यार था, मगर उससे ज्यादा प्यार उसके बेटे जहांगीर को था। अपने बेटे नुरुद्दीन मोहम्मद सलीम यानी जहांगीर को अकबर प्यार से सलीम कहता था। सलीम को एक आम लड़की अनारकली से प्यार हो गया था। कहते हैं कि सलीम अनारकली से मिलने जब भी जाता तो गुलाब का फूल लेकर जाता। उनका यह प्यार परवान चढ़े, उससे पहले ही यह सत्ता की ताकत के आगे दम तोड़ गया। हालांकि, इतिहास में इसके पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, मगर उस दौर की कई और किताबों में सलीम-अनारकली के प्यार के किस्से बेहद मशहूर रहे।
2018 में टीवी धारावाहिक दास्ताने मोहब्बत में सलीम-अनारकली की प्रेम कहानी दर्शायी गई थी, जिसने दर्शकों की वाहवाही लूटी।
2018 में टीवी धारावाहिक दास्ताने मोहब्बत में सलीम-अनारकली की प्रेम कहानी दर्शायी गई थी, जिसने दर्शकों की वाहवाही लूटी।
अकबर के दरबार में हॉकिंस की एंट्री, नहीं मिली फैक्ट्री की मंजूरी
यह वह दौर था, जब ब्रिटेन का पूरी दुनिया पर राज था और कहा जाता था कि दुनिया में ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी नहीं डूबता था। इसी दौर में महारानी की इजाजत से अंग्रेजों का एक दूत जेम्स हॉकिंस अकबर के दरबार में आया। उसने दरबार में अपनी जगह तो मुकम्मल कर ली, मगर हिंदुस्तान में फैक्ट्री खोलने की मंजूरी नहीं ले पाया। तब 1615 में ब्रिटेन के किंग जेम्स प्रथम के दूत के रूप में टॉमस रो भारत आया। उसने पता लगाया कि जहांगीर से कैसे अपनी बात मनवाई जा सकती है।
जहांगीर ने गुलाब और तोहफे लेकर अंग्रेजों को दी फैक्ट्री बनाने की इजाजत
जहांगीर के बारे में कहा जाता है कि उसे तोहफे बहुत पसंद थे और वह शराब का शौकीन भी था। उसे गुलाब समेत सभी फूलों से प्यार था। उसके दरबार में मशहूर चित्रकार मंसूर था, जिसने गुलाब समेत हर तरह के फूलों, पौधों के चित्र बनाए। टॉमस रो वैसे तो 18 सितंबर, 1615 को सूरत बंदरगाह पर पहुंचा था। मगर, वह जहांगीर से चार महीने बाद ही मिल पाया। अजमेर में जहांगीर का दरबार लगा था।
यह तस्वीर ब्रिटेन के शाही म्यूजियम में रखी गई है, जिसमें टॉमस रो को जहांगीर के दरबार में खड़ा दिखाया गया है।
यह तस्वीर ब्रिटेन के शाही म्यूजियम में रखी गई है, जिसमें टॉमस रो को जहांगीर के दरबार में खड़ा दिखाया गया है।
जब टॉमस रो जहांगीर के दरबार में पहुंचा तो उसकी हालत बेहद खराब थी। उसने जहांगीर को गुलाब के फूल, रेड वाइन और महंगे तोहफे भेंट किए, जिसे देखकर जहांगीर खुश हो गया। कहा जाता है कि उसके बाद जहांगीर ने टॉमस रो के साथ कई बार जमकर शराब पी और बातों-बातों में ही अंग्रेजों को सूरत में अपनी बस्ती बसाने की इजाजत दे दी, जो हिंदुस्तान के लिए गुलामी की नई इबारत साबित हुई। इसके बाद तो अंग्रेज पूरे हिंदुस्तान में पांव पसारते गए और मुगल सिमटते गए। बाद में अपने राजदूत टॉमस को ब्रिटिश साम्राज्य ने सर की उपाधि दी।
आहिस्ता-आहिस्ता गुलाब हिंद-इस्लामी तहजीब का हिस्सा बन गया
आहिस्ता-आहिस्ता गुलाब हिंद-इस्लामी तहजीब का हिस्सा बन गया
मध्यकालीन इतिहास पर शोध करने वाले डॉ. दानपाल सिंह कहते हैं कि हिंदुस्तान में ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें जमाने जैसी उपलब्धियों में अहम भूमिका निभाने की खातिर राजदूत टॉमस को सर की उपाधि दी गई थी। टॉमस ने यह उपलब्धि कह सकते हैं कि गुलाब और तोहफे देकर हासिल कर ली थी, जो जहांगीर की बड़ी कमजोरी थी।
नूरजहां को भी था फूलों से प्यार, गुलाब से बनाया था इत्र
जहांगीर की बेगम नूरजहां को भारत में फैशन और इत्र के नए-नए प्रयोगों की शुरुआत करने वाला माना जाता है। नूरजहां ने गुलाब से इत्र बनाने की खोज की, जिसे ईरान में अतर कहा जाता था, जो हिंदुस्तान में आकर इत्र कहलाया। कहा जाता है कि नूरजहां गुलाब के पानी में ही नहाती थी। एक अनुमान के मुताबिक, 20 हजार गुलाब के फूलों से शराब की एक छोटी बोतल बनाई जाती थी, जो मुगलों को बेहद पसंद थी।
नूरजहां को भारत में तरह-तरह के ज्वैलरी, फैशन और मीना बाजार का चलन शुरू कराने का श्रेय दिया जाता है।
नूरजहां को भारत में तरह-तरह के ज्वैलरी, फैशन और मीना बाजार का चलन शुरू कराने का श्रेय दिया जाता है।
ठाट-बाट ऐसे कि घोड़ों के शरीर पर मले जाते थे गुलाब
मुगलों की इस शानो-शौकत के बारे में 17वीं सदी में भारत आए इतालवी यात्री मनूची ने जिक्र किया है। मनूची अपने संस्मरण में लिखता है कि मुगलों को गुलाब से इतना प्यार था कि वे इसके पानी से ही खुद नहाते थे और उनके शाही घोड़ों को भी इससे नहलाया जाता था। एक और यात्री अब्दुर्रज्जाक ने भी इस बारे में बताया है। स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज के एक स्कॉलर मेहरीन एम चिड़ा-रिजवी ने भी अपनी किताब 'द पर्सेप्शन ऑफ रिसेप्शन: द इंपॉर्टेंस ऑफ सर टॉमस रो एट द मुगल कोर्ट ऑफ जहांगीर' में मुगलों के ठाट-बाट का जिक्र किया है।
मुगल गार्डन, निशात बाग, शालीमार बाग बनाए गए
मुगलों काे पेड़-पौधों और फूलों से इतना लगाव था कि उन्होंने अपने महलों में फूल-पौधों के गार्डन बनवाए। इसमें दुनिया के एक से बढ़कर गुलाब के पौधे लगाए जाते थे। खुद बाबर ने चार बाग बनवाए, जिसे आज का मुगल गार्डन कहा जाता है। जहां पर तरह-तरह के गुलाब ईरान-अफगानिस्तान से मंगवाकर लगवाए गए थे। बाद में जहांगीर, शाहजहां ने भी कश्मीर, आगरा और दिल्ली में ऐसे गार्डन बनवाए। जैसे शालीमार गार्डन, निशात बाग, ताजमहल में बेहद खूबसूरत गुलाब के पौधे लगवाए गए। जहांगीर और शाहजहां अपने दीवाने खास और दीवानेआम यानी दरबार में भी गुलाब की खुशबू लेते रहते थे। बाद में यह आम लोगों में भी प्रेम का इजहार करने में चलन में आ गया।
गुलाब शाहजहां और मुमताज के बीच प्रेम इजहार का जरिया भी बना।
गुलाब शाहजहां और मुमताज के बीच प्रेम इजहार का जरिया भी बना।
सुहागरात में सेज सजाने में गुलाब के फूल का कामसूत्र में है जिक्र
ऐसा नहीं है कि गुलाब मुगलों के दौर में ही आया हो। मुगलों ने गुलाब को व्यापक पहचान जरूर दी, मगर उससे पहले भी हिंदुस्तान में गुलाब की अहमियत थी। हिंदू पौराणिक मान्यताओं में सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा को कमल पसंद है तो भगवान विष्णु को गुलाब। वहीं, पहली सदी से पहले लिखी गई वात्स्यायन की मशहूर किताब कामसूत्र में सुहागरात की सेज पर अहम पलों में गुलाब के फूल की अहमियत बताई गई है।

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