बचपन में देखा मस्जिदों के बाहर हिंदू महिलायें अपने बीमार बच्चों को गोद में लिये खड़ी रहती थीं।
नमाज़ी, नमाज़ अदा करके निकलते और बच्चों पर दुआ पढ़कर फूँकते।
इन महिलाओं की आस्था थी कि इन नमाज़ियों की दुआ में जो शिफ़ा है वो बड़े-बड़े डॉक्टरों की दवा में नहीं।
इसका कोई वैज्ञानिक आधार न भी हो तब भी आस्था तो आस्था है।
फूंकना अब थूकना बन गया है।
मेरा देश बदल गया है।
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