(ये) वह लोग हैं कि जिन (ताल्लुक़ात) के क़ायम रखने का ख़ुदा ने हुक्म दिया
उन्हें क़ायम रखते हैं और अपने परवरदिगार से डरते हैं और (क़यामत के दिन)
बुरी तरह हिसाब लिए जाने से ख़ौफ खाते हैं (21)
और (ये) वह लोग हैं जो अपने परवरदिगार की खुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से
(जो मुसीबत उन पर पड़ी है) झेल गए और पाबन्दी से नमाज़ अदा की और जो कुछ
हमने उन्हें रोज़ी दी थी उसमें से छिपाकर और खुल कर ख़ुदा की राह में खर्च
किया और ये लोग बुराई को भी भलाई स दफा करते हैं -यही लोग हैं जिनके लिए
आखि़रत की खूबी मख़सूस है (22)
(यानि) हमेश रहने के बाग़ जिनमें वह आप जाएंगे और उनके बाप, दादाओं,
बीवियों और उनकी औलाद में से जो लोग नेको कार है (वह सब भी) और फरिश्ते
बेहशत के हर दरवाजे़ से उनके पास आएगें (23)
और सलाम अलैकुम (के बाद कहेगें) कि (दुनिया में) तुमने सब्र किया (ये उसी का सिला है देखो) तो आखि़रत का घर कैसा अच्छा है (24)
और जो लोग ख़ुदा से एहद व पैमान को पक्का करने के बाद तोड़ डालते हैं और
जिन (तालुकात बाहमी) के क़ायम रखने का ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन्हें क़तआ
(तोड़ते) करते हैं और रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाते फिरते हैं ऐसे ही लोग हैं
जिनके लिए लानत है और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा घर (जहन्नुम) है (25)
और ख़ुदा ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी को बढ़ा देता है और जिसके लिए
चाहता है तंग करता है और ये लोग दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी पर बहुत
निहाल हैं हालांकि दुनियावी जि़न्दगी (नईम) आखि़रत के मुक़ाबिल में बिल्कुल
बेहकीक़त चीज़ है (26)
और जिसने उसकी तरफ रुज़ू की उसे अपनी तरफ पहुँचने की राह दिखाता है (ये) वह लोग हैं जिन्होंने इमान कुबूल किया और उनके दिलों को ख़ुदा की चाह से तसल्ली हुआ करती है (28)
जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनके वास्ते (बेहिश्त में) तूबा (दरख़्त) और ख़ुशहाली और अच्छा अन्जाम है (29)
(ऐ रसूल जिस तरह हमने और पैग़म्बर भेजे थे) उसी तरह हमने तुमको उस उम्मत में भेजा है जिससे पहले और भी बहुत सी उम्मते गुज़र चुकी हैं -ताकि तुम उनके सामने जो क़ुरान हमने वही के ज़रिए से तुम्हारे पास भेजा है उन्हें पढ़ कर सुना दो और ये लोग (कुछ तुम्हारे ही नहीं बल्कि सिरे से) ख़ुदा ही के मुन्किर हैं तुम कह दो कि वही मेरा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मै उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी तरफ रुजू करता हूँ (30)
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