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08 जनवरी 2022

नबी और मोमिनीन पर जब ज़ाहिर हो चुका कि मुशरेकीन जहन्नुमी है तो उसके बाद मुनासिब नहीं

 (ये लोग) तौबा करने वाले इबादत गुज़ार (ख़़ुदा की) हम्दो सना (तारीफ़) करने वाले (उस की राह में) सफर करने वाले रूकूउ करने वाले सजदा करने वाले नेक काम का हुक्म करने वाले और बुरे काम से रोकने वाले और ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुयी) हदो को निगाह रखने वाले हैं और (ऐ रसूल) उन मोमिनीन को (बेहिष्त की) ख़ुषख़बरी दे दो (112)
नबी और मोमिनीन पर जब ज़ाहिर हो चुका कि मुशरेकीन जहन्नुमी है तो उसके बाद मुनासिब नहीं कि उनके लिए मग़फिरत की दुआए माँगें अगरचे वह मुशरेकीन उनके क़राबतदार हो (क्यों न) हो (113)
और इबराहीम का अपने बाप के लिए मग़फिरत की दुआ माँगना सिर्फ इस वायदे की वजह से था जो उन्होंने अपने बाप से कर लिया था फिर जब उनको मालूम हो गया कि वह यक़ीनी ख़़ुदा का दुश्मन है तो उससे बेज़ार हो गए, बेशक इबराहीम यक़ीनन बड़े दर्दमन्द बुर्दबार (सहन करने वाले) थे (114)
ख़़ुदा की ये शान नहीं कि किसी क़ौम को जब उनकी हिदायत कर चुका हो उसके बाद बेशक ख़़ुदा उन्हें गुमराह कर दे हता (यहां तक) कि वह उन्हीं चीज़ों को बता दे जिससे वह परहेज़ करें बेशक ख़ुदा हर चीज़ से (वाकि़फ है) (115)
इसमें तो शक ही नहीं कि सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़़ुदा ही के लिए ख़ास है वही (जिसे चाहे) जिलाता है और (जिसे चाहे) मारता है और तुम लोगों का ख़़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त है न मददगार (116)
अलबत्ता ख़़ुदा ने नबी और उन मुहाजिरीन अन्सार पर बड़ा फज़ल किया जिन्होंने तंगदस्ती के वक़्त रसूल का साथ दिया और वह भी उसके बाद कि क़रीब था कि उनमे से कुछ लोगों के दिल जगमगा जाएँ फिर ख़ुदा ने उन पर (भी) फज़ल किया इसमें शक नहीं कि वह उन लोगों पर पड़ा तरस खाने वाला मेहरबान है (117)
और उन यमीमों पर (भी फज़ल किया) जो (जिहाद से पीछे रह गए थे और उन पर सख़्ती की गई) यहाँ तक कि ज़मीन बावजूद उस वसअत (फैलाव) के उन पर तंग हो गई और उनकी जानें (तक) उन पर तंग हो गई और उन लोगों ने समझ लिया कि ख़़ुदा के सिवा और कहीं पनाह की जगह नहीं फिर ख़़ुदा ने उनको तौबा की तौफीक दी ताकि वह (ख़़ुदा की तरफ) रूजू करें बेशक ख़़ुदा ही बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है (118)
ऐ ईमानदारों ख़़ुदा से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ (119)
मदीने के रहने वालों और उनके गिर्दोनवा (आस पास) देहातियों को ये जायज़ न था कि रसूल ख़़ुदा का साथ छोड़ दें और न ये (जायज़ था) कि रसूल की जान से बेपरवा होकर अपनी जानों के बचाने की फ्रिक करें ये हुक्म उसी सब्ब से था कि उन (जिहाद करने वालों) को ख़़ुदा की रूह में जो तकलीफ़ प्यास की या मेहनत या भूख की षिद्दत की पहुँचती है या ऐसी राह चलते हैं जो कुफ़्फ़ार के ग़ैज़ (ग़ज़ब का बाइस हो या किसी दुष्मन से कुछ ये लोग हासिल करते हैं तो बस उसके ऐवज़ में (उनके नामए अमल में) एक नेक काम लिख दिया जाएगा बेशक ख़ुदा नेकी करने वालों का अज्र (व सवाब) बरबाद नहीं करता है (120)

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