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16 जनवरी 2022

कहावत कहो , या कड़वा सच कहो

 कहावत कहो , या कड़वा सच कहो ,, परदेसियों से अंखिया ना मिलाना , परदेसियों का तो है , आना जाना , यह परदेसी कुछ एक अपवादों को छोड़कर किसी के सगे नहीं होते , यह कहावत हर शख्स के साथ उसकी ज़िंदगी के कमोबेश गुज़रती है , यह प्यार की बात नहीं , यह विश्वास ,भरोसे और अनुभव की बात है , सियासी परदेसियों में कार्यकता तो इस तरह के परदेसी नेताओं से रोज़ ठगे जाते है , परदेसी नेता अलग अलग शहरों में जाते है , कार्यकर्ता हों , मित्र हो , या फिर उनके जानकार हों, उनसे मिलते है , बढ़ी बढ़ी बातें करते है , वायदे करते है , ख्वाब दिखते है ,और फिर कुछ एक अपवादों को छोड़कर अधिकतम लोग ,, अपने हर वायदे को भूल जाते है ,कुछेक तो ऐसे भी होते है , जो आपके शहर में आपको तलाशते है , मिलते है , उनके शहर की दावतें देते है , व्यवहार में उसे बेहतर कोई नहीं ऐसा साबित करते है , और फिर अपने शहर में जाकर सब कुछ भूल जाते है , उनके पास आपके फोन उठाने का वक़्त नहीं रहता , वोह आपसे कोई राब्ता नहीं रखना चाहते , आपकी मोहब्बत अगर उनसे सम्पर्क करने के लिए कहे तो वोह आपके फोन को रिसीव भी नहीं करते , चलो व्यस्त है तो होंगे , बाद में भी पलट कर बात नहीं करते, ऐसा शायद हर शहर में , सियासी लोग हों , या फिर समाजसेवा से जुड़े लोग, कमोबेश होता रहता है , आप लोगों में से कुछ ;लोगों के साथ , इक्का दुक्का परदेसियों ने ,आपसे मिलने पर मोहब्बत का सुलूक किया होगा , फिर अपने शहर में जाकर आपको भूल गए होंगे , या खुद को बढ़ा साबित करने के प्रयासों में , इग्नोर कर रहे होंगे , तो जनाब अगर ऐसा है तो अपने अनुभवों को प्लीज़ सांझा तो कीजिये ,, ,एक पहल ऐसे लोगों की अंतर्रात्मा को झकझोर कर , उन्हें फिर से एक आम इंसान , एक जेंटलमेन बनाने की कोशिश की शुरुआत तो कीजिये ,, अख्तर

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