आपका-अख्तर खान

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12 नवंबर 2021

कुछ लोग जो कुछ नहीं करते , दूसरों को देखकर

 

कुछ लोग जो कुछ नहीं करते , दूसरों को देखकर , कुंठित होकर , मनोरोगी हो जाते है , तब उनके विचार में , आरोपों के सिवा कुछ दूसरे विचार नहीं आते है फ्रस्ट्रेट होते है , कुछ लोग जो खुद तो , एक मनोचिकित्सक ने खूब कहा ,, के आज के दिनों में कुछ लोग है , जो खुद अपने लिए जीते हैं , खुद किसी भी समस्या पर आवाज़ नहीं उठाते , बोलते नहीं , ,लिखते नहीं , संबंधित व्यक्ति को पत्र नहीं लिखते , ज्ञापन नहीं देते , धरना , प्रदर्शन नहीं करते , अपनी कॉम के लिए हिलते डुलते भी नहीं , समस्याओं को देखते है , लेकिन बस ,, जो लोग कुछ करते हैं , या नहीं करते , उनके पीछे एक कुंठा का लठ लेकर , कुछ रटे रटाये फ्रस्ट्रेट , मनोरोगी जुमलों के साथ पढ़ जाते है , जिनमे कुछ जुमले ,, ,खा गये रे ,, मिल गए रे , सेटिंग कर ली रे , ,तलवे चाट रहे है , ,चमचे है , हाथ बांधे खड़े हैं , मनोचिकित्सक ऐसे रोगियों के बारे में कहते है , ऐसे कुंठित रोगियों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए , क्योंकि वोह बीमार है , उन्हें पता नहीं , ,आम लोगों की समस्याओं के समाधान , अपनी कॉम , अपने समाज के संघर्ष के लिए , कितनी परेशानियां झेलना पढ़ती है , अपना घर , बार छोड़कर कई बारे , बैठकों में , प्रदर्शनों में , जाना पढता है , पत्र लिखना पढ़ते है , ज्ञापन देना पढ़ते है , ज़िम्मेदारों को सुझावों के साथ , शिकायतें देना पढ़ती है , जो यह लोग कभी नहीं करते , कभी किसी कलेक्टर , या मंत्री के पास जाकर , अपनी कॉम की कोई समस्या नहीं रखते , जबकि ऐसे कुंठाग्रस्त लोगों को , अपनी कॉम की समस्याओं के समाधान के लिए , ,प्रेस कॉन्फ्रेंस करने , कलेक्टर हो , एस पी हो , विधायक हो , सांसद हो , मंत्री हो , ,मुख्यमंत्री हो , प्रधानमंत्री हो , उनसे मिलने , उन्हें ज्ञापन देने , जो भी समस्या वोह समझते है ,उसकी शिकायत करने , अख़बारों में खबर छपवाने के लिए , उन्हें कभी किसी ने नहीं रोका , कभी किसी ने इंकार नहीं किया , वोह सब जो वोह सोचते हैं के यह गलत हो रहा है , सही यह होना चाहिए , समाज , कॉम के लिए कोई कुछ नहीं कर पा रहा है , समस्याएं जस की तस है , उनका निराकरण नहीं हो रहा है ,तो फिर उनकी आज़ादी है , के वोह खुलकर सामने आएं , समस्याएं लिखे , मंत्री का घेराव् करें , कलेक्टर के यहाँ धरना दें , प्रदर्शन करें , लेकिन मनोचिकित्सक के मुताबिक़ ,, ऐसे लोग कभी भी अपने समाज की समस्याओं के समाधान के लिए ,, कोई ख़ास नहीं करते , उनमें शामिल नहीं होते , उनकी समस्याओं पर आवाज़ नहीं उठाते , बस जो कर ने की कोशिश करते है , या उनके कुछ काम काजों , क़ुर्बानियों से वोह , कुछ प्रतिष्ठा हांसिल कर लेते है , बस उन पर बिना किसी सुबूत के , हमला करते है , खा गये रे , मिल गए रे , सेटिंग हों गयी रे ,, चमचे हैं रे , गुलाम हैं रे , तलवे चाट रहे है रे , कॉम के दलाल है रे ,, ,तो जनाब बात तो सही है , जब लोग , दलाली करते हैं , तलवे चाटते हैं , गुलामी करते है , कुछ नहीं करते , बेईमान होते हैं , ,खा जाते हैं , मिल जाते है , सेटिंग कर लेते हैं , तो फिर उन्हें तो जो कर रहे है वोह करने तो ,तुम तो इलज़ाम खोरी की बिमारी से बाहर निकलो ,तुम तो समस्याओं के लिए कलेक्टर के पास , एस पी के पास , मंत्री के पास ,विधायक के पास , सांसद या फिर जो भी इसके लिए ज़िम्मेदार हो , उसके पास जाकर खुद समस्या के समाधान के लिए बात करो , ज्ञापन दो , पत्र लिखो , अख़बारों में छपवाओ , अख़बारों में नहीं तो सोशल मिडिया पर ही लिख दो , हो सकता है ,, ऐसे लोग रहनुमा साबित हो जाए , उनके हाथ पाँव हिलाने से , ,जो काम , दलालों ,चमचों ,तलवे चाटुओं , खा गए रे , मिल गए रे , सेटिंग कर ली रे , की वजह से समाज के कॉम के रुके पढ़े है , उन मामलों में , ऐसे लोगों के साहसिक क़दम , से कोई फायदा हो जाए ,, तो जनाब , इलज़ाम लगाने की जगह , आत्मचिंतन कर , खुद भी कुछ तो करोगे न , कुछ करने का संकल्प तो लोगे न जो लोग चमचे है , दलाल है ,उनके प पाँव के छाले ,,उनके सफर की दिक़्क़तों को समझोगे तो सही ना, दूसरे के लिए अपनानित बोल के लिए , दूसरी कॉम के ही बहुत लोग है , उनके लिए सम्मान नहीं तो अपमानित बोल , अपमानी सोच से खुद को रोकोगे तो सही ना , उनकी लाइन को छोटी करने की छोटी सोच से ऊपर उठा कर , बढ़ी सोच के तहत , खुद की बढ़ी लाइन करने की जुस्तजू करोगे तो सही न , जैसे हमारे शहर में भी कई लोग है , वोह अगर देखते है , तो खुद लिखते है , समस्याओं पर चर्चा करते हैं , कलक्टर हो , मंत्री हो , जो भी हो उनसे अपनी बात मनवाने की कोशिश करते है , काफी कामयाब भी होते है , लेकिन ऐसे बेचारों पारा भी चुनाव के ऍन वक़्त पर वोट डालने के पहले , खुद की मस्जिद तक तोड़ने का इलज़ाम धर दिए जाते हैं ,, ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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कुछ लोग जो फ्रस्ट्रेट होते है , कुछ लोग जो खुद तो कुछ नहीं करते , दूसरों को देखकर , कुंठित होकर , मनोरोगी हो जाते है , तब उनके विचार में , आरोपों के सिवा कुछ दूसरे विचार नहीं आते है , एक मनोचिकित्सक ने खूब कहा ,, के आज के दिनों में कुछ लोग है , जो खुद अपने लिए जीते हैं , खुद किसी भी समस्या पर आवाज़ नहीं उठाते , बोलते नहीं , ,लिखते नहीं , संबंधित व्यक्ति को पत्र नहीं लिखते , ज्ञापन नहीं देते , धरना , प्रदर्शन नहीं करते , अपनी कॉम के लिए हिलते डुलते भी नहीं , समस्याओं को देखते है , लेकिन बस ,, जो लोग कुछ करते हैं , या नहीं करते , उनके पीछे एक कुंठा का लठ लेकर , कुछ रटे रटाये फ्रस्ट्रेट , मनोरोगी जुमलों के साथ पढ़ जाते है , जिनमे कुछ जुमले ,, ,खा गये रे ,, मिल गए रे , सेटिंग कर ली रे , ,तलवे चाट रहे है , ,चमचे है , हाथ बांधे खड़े हैं , मनोचिकित्सक ऐसे रोगियों के बारे में कहते है , ऐसे कुंठित रोगियों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए , क्योंकि वोह बीमार है , उन्हें पता नहीं , ,आम लोगों की समस्याओं के समाधान , अपनी कॉम , अपने समाज के संघर्ष के लिए , कितनी परेशानियां झेलना पढ़ती है , अपना घर , बार छोड़कर कई बारे , बैठकों में , प्रदर्शनों में , जाना पढता है , पत्र लिखना पढ़ते है , ज्ञापन देना पढ़ते है , ज़िम्मेदारों को सुझावों के साथ , शिकायतें देना पढ़ती है , जो यह लोग कभी नहीं करते , कभी किसी कलेक्टर , या मंत्री के पास जाकर , अपनी कॉम की कोई समस्या नहीं रखते , जबकि ऐसे कुंठाग्रस्त लोगों को , अपनी कॉम की समस्याओं के समाधान के लिए , ,प्रेस कॉन्फ्रेंस करने , कलेक्टर हो , एस पी हो , विधायक हो , सांसद हो , मंत्री हो , ,मुख्यमंत्री हो , प्रधानमंत्री हो , उनसे मिलने , उन्हें ज्ञापन देने , जो भी समस्या वोह समझते है ,उसकी शिकायत करने , अख़बारों में खबर छपवाने के लिए , उन्हें कभी किसी ने नहीं रोका , कभी किसी ने इंकार नहीं किया , वोह सब जो वोह सोचते हैं के यह गलत हो रहा है , सही यह होना चाहिए , समाज , कॉम के लिए कोई कुछ नहीं कर पा रहा है , समस्याएं जस की तस है , उनका निराकरण नहीं हो रहा है ,तो फिर उनकी आज़ादी है , के वोह खुलकर सामने आएं , समस्याएं लिखे , मंत्री का घेराव् करें , कलेक्टर के यहाँ धरना दें , प्रदर्शन करें , लेकिन मनोचिकित्सक के मुताबिक़ ,, ऐसे लोग कभी भी अपने समाज की समस्याओं के समाधान के लिए ,, कोई ख़ास नहीं करते , उनमें शामिल नहीं होते , उनकी समस्याओं पर आवाज़ नहीं उठाते , बस जो कर ने की कोशिश करते है , या उनके कुछ काम काजों , क़ुर्बानियों से वोह , कुछ प्रतिष्ठा हांसिल कर लेते है , बस उन पर बिना किसी सुबूत के , हमला करते है , खा गये रे , मिल गए रे , सेटिंग हों गयी रे ,, चमचे हैं रे , गुलाम हैं रे , तलवे चाट रहे है रे , कॉम के दलाल है रे ,, ,तो जनाब बात तो सही है , जब लोग , दलाली करते हैं , तलवे चाटते हैं , गुलामी करते है , कुछ नहीं करते , बेईमान होते हैं , ,खा जाते हैं , मिल जाते है , सेटिंग कर लेते हैं , तो फिर उन्हें तो जो कर रहे है वोह करने तो ,तुम तो इलज़ाम खोरी की बिमारी से बाहर निकलो ,तुम तो समस्याओं के लिए कलेक्टर के पास , एस पी के पास , मंत्री के पास ,विधायक के पास , सांसद या फिर जो भी इसके लिए ज़िम्मेदार हो , उसके पास जाकर खुद समस्या के समाधान के लिए बात करो , ज्ञापन दो , पत्र लिखो , अख़बारों में छपवाओ , अख़बारों में नहीं तो सोशल मिडिया पर ही लिख दो , हो सकता है ,, ऐसे लोग रहनुमा साबित हो जाए , उनके हाथ पाँव हिलाने से , ,जो काम , दलालों ,चमचों ,तलवे चाटुओं , खा गए रे , मिल गए रे , सेटिंग कर ली रे , की वजह से समाज के कॉम के रुके पढ़े है , उन मामलों में , ऐसे लोगों के साहसिक क़दम , से कोई फायदा हो जाए ,, तो जनाब , इलज़ाम लगाने की जगह , आत्मचिंतन कर , खुद भी कुछ तो करोगे न , कुछ करने का संकल्प तो लोगे न जो लोग चमचे है , दलाल है ,उनके प पाँव के छाले ,,उनके सफर की दिक़्क़तों को समझोगे तो सही ना, दूसरे के लिए अपनानित बोल के लिए , दूसरी कॉम के ही बहुत लोग है , उनके लिए सम्मान नहीं तो अपमानित बोल , अपमानी सोच से खुद को रोकोगे तो सही ना , उनकी लाइन को छोटी करने की छोटी सोच से ऊपर उठा कर , बढ़ी सोच के तहत , खुद की बढ़ी लाइन करने की जुस्तजू करोगे तो सही न , जैसे हमारे शहर में भी कई लोग है , वोह अगर देखते है , तो खुद लिखते है , समस्याओं पर चर्चा करते हैं , कलक्टर हो , मंत्री हो , जो भी हो उनसे अपनी बात मनवाने की कोशिश करते है , काफी कामयाब भी होते है , लेकिन ऐसे बेचारों पारा भी चुनाव के ऍन वक़्त पर वोट डालने के पहले , खुद की मस्जिद तक तोड़ने का इलज़ाम धर दिए जाते हैं ,, ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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