आपका-अख्तर खान

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08 अक्टूबर 2021

भारत में भारतीय प्रशासनिक सेवा की सबसे बढ़ी परीक्षा , और उस परीक्षा में , एक शख्स , आसीम किफायत खान उर्दू जुबां के माध्यम से , इस परीक्षा में हिस्सेदार हो , दो बार पास हो जाए , पहली बार इंटरविव में धड़ाम होकर भी , एक नए हौसले के साथ ,दूसरी बार के इंटरविव में , ज़िंदाबाद हो जाए

 

भारत में भारतीय प्रशासनिक सेवा की सबसे बढ़ी परीक्षा , और उस परीक्षा में , एक शख्स , आसीम किफायत खान उर्दू जुबां के माध्यम से , इस परीक्षा में हिस्सेदार हो , दो बार पास हो जाए , पहली बार इंटरविव में धड़ाम होकर भी , एक नए हौसले के साथ ,दूसरी बार के इंटरविव में , ज़िंदाबाद हो जाए , भारतीय प्रशासनिक सेवा में 558 विन रेंक लेकर , भारत में एक इतिहास बना दे ,, विश्वपटल पर , उर्दू भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की ज़ुबान ही बता दे , तो फिर मेरा भारत , मेरे भारत के वोह सभी लोग जो इस सिस्टम में ईमानदार है ज़िंदाबाद है ना , ,,,मुझे फख्र है , गर्व है के में भारत का नागरिक हूँ , जहाँ सभी ज़ुबानों का , सभी धर्मों का आदर सम्मान है ,, मेरा भारत महान है , महाराष्ट्र में धुले ज़िले के एक गाँव के , आसीम किफायत खान ने उर्दू के हक़ के लिए लड़ी जा रही जंग को एक नई ताक़त दी है , एक हौसला दिया है , आसीम किफायत खान एक टीचर के पुत्र , और वोह भी पैरेलैटिक यानि लक़वे से पीड़ित होकर , ज़ेरे इलाज , एक तरफ वालिद की खिदमत , दूसरी तरफ , भारतीय प्रशासनिक सेवा में , चयनित होने का जूनून ,, इंजीनियरिंग बायोटेक में बहतर से बेहतर नंबर लाने के बाद पैकेज नौकरी के पीछे नहीं भागे , कोचिंग ली , दिल्ली गए , और उर्दू जुबां में भरतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा देने के लिए , विकल्प दिया , खूब पढ़े , ज़ाहिर है उर्दू जुबां में , कई किताबें , कई पासबुकें , कई पेपर इन्हे नहीं मिले , कोचिंग में भी दिक़्क़त आयी , लेकिन यह हिम्मत नहीं हारे , इसके पहले यह पास हुए ,, लेकिन इंटरविव में इन्हे निकाल दिया गया , फिर हिम्मत की , और अब माशा अल्लाह , कामयाब हुए , आसीम किफायत खान का इंजीनियरिंग से , उर्दू जुबां में , भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन का सफर , यूँ तो बहुत मुश्किल था , लेकिन इनकी मुश्किलें , इनके हौसलों के आगे बोनी साबित हुई , और इन्होने मुक़ाबला करके अपना मुक़ाम हांसिल किया , अब पुरे देश में , इनके इस हौसले से , उर्दू के खिलाफ उर्दू के मुखालिफ , उर्दू से पक्षपात , उर्दू के साथ ज़्यादती , उर्दू के साथ झूंठे वायदे , फिर वायदा खिलाफी करने वालों को वोट के हथियार से , जंग का ऐलान करना ,होगा , और जो उर्दू का है ,, वोह वोट का हक़दार है , जो उर्दू के लिए झूंठा मक्कार है , वोह वोट का हक़दार नहीं का नारा देकर ,ऐसे लोगों के तख्त ओ ताज को ठोकरों पर लाना होगा , इसमें कई दलाल , कई खरीददार , कई झूंठे ,फरेबी , कई फरेबी , कई झांसेबाज , हमारे पानी आस्तीनों में से निकल कर आएंगे , लेकिन परवाह नहीं ,हमारा निशाना , इंक़लाब ज़िंदाबाद , सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा रहेगा , तो इंशा अल्लाह हम होंगे , कामयाब ,, एक दिन ,
यह मेरा भारत महान है , यहां लाखों लाख , नफरत बाज़ फ़सादियों के बावजूद भी , लोकतंत्र , संविधान , क़ानून , देश की छत्तीस क़ौमों , उनकी भाषाओँ , धर्म , समाजों का सम्मान है , यही वजह है ,, के राजनितिक बलात्कार की शिकार उर्दू भाषा माध्यम से , आसीम किफायत खान , भारतीय प्रशासनिक सेवा में , 558 नंबर पर चयनित हुआ है , यह भारत में एक नई रौशनी की किरण है , देश में उन सभी फ़सादियों के मुंह पर तमाचा है , जो ज़ुबानों , मज़हबों , धर्मों , समाजों के नाम पर वाद विवाद पैदा करते है , ज़ुबानों के नाम पर दूसरे , तीसरे दर्जे का व्यवहार करते है , यह उन लोगों के लिए भी हौसला है , जो लोग , हार तक कर बैठ गए है , जो लोग सोचते है , अब यहां जंगल राज है , अब यहां जिसकी लाठी उसी की भैंस है , जो भीड़तंत्र , जो सरकारें कर रही है ,वही हो रहा है ,पक्षपात हो रहा है , दमनकारी नीतियां है , इन्साफ नहीं है , जी हाँ दोस्तों , एक जुबान उर्दू , जो कभी अखंड भारत की राष्ट्र भाषा , राज भाषा हुआ करती थी , जो कश्मीर से कन्याकुमारी , बंगाल से अफगानिस्तान तक की आवाज़ होती थी , वोह भाषा जो आज प्यार , मोहब्बत , खुलूस की भाषा है , फिल्मों के गीत , ग़ज़ल , साहित्य की जान है ,वोह भाषा जो संस्कृत की बेटी , अरबी , फ़ारसी की बहन है , वोह भाषा जो भारत की कोख में , सभी ज़ुबानों , सभी लश्करों के साथ मिलकर , जन्मी है , पली बढ़ी है , उर्दू वोह भाषा , जिसने अंग्रेज़ों से भारत को आज़ाद कराने के लिए , जान की बाज़ी लगा दी है ,वोह भाषा जिसने इंक़लाब ज़िंदाबाद , सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा , जैसे नारे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुलंद किये ,वोह भाषा जो अब सेक्युलर राज्यों में भी घुटनों के बल रेंग रही है , कई राज्यों में तो दम तोड़ चुकी है , कई राज्यों में , जहाँ मुख्यमंत्री किसी भी पार्टी के हों , सरकारें किसी भी पार्टी की हों , उर्दू को सिर्फ , एक मज़हब की जुबांन समझकर , उसके साथ पक्षपात कर रहे है , रोज़गार खत्म , जुबां खत्म , तहज़ीब खत्म , स्कूल खत्म , टीचर्स खत्म , पैराटीचर्स खत्म , और इसके लिए , अल्पसंख्यक विभाग कहो , मंत्रालय कहो , वोह इस जुबां की गर्दन रेत रहा है , ,, मुशायरे खत्म , उर्दू खत्म , उर्दू ऐकडमी खत्म , स्कूलों ,कॉलेजों में उर्दू निदेशालय के झूंठे वायदे , मदरसों में पक्षपात , बजट नहीं ,पैराटीचर्स को सहूलियतें नहीं , स्कूलों में तृतीय भाषा , जहाँ उर्दू मीडियम के स्कूल थे , वहां के स्कूल बंद , या जहाँ उर्दू पढ़ने वाले थे , वहां से स्थानांतरित करके , जहाँ उर्दू पढ़ें वाले नहीं है , वहां स्थानांतरित कर दिए गए उर्दू जुबां को बचाने , इसे सुरक्षित , संरक्षित कर ,, इसका बिखरा वुजूद समेटने , इसके साथ न्याय करने के लिए कुछ एक अपवादों को छोड़ दो , तो सिर्फ इसके साथ सियासत हो रही है , रंगनाथ मिश्र , काका केलकर , सच्चर आयोग सभी की रिपोर्टें धुल चाट रही है , अल्पसंख्यक आयोग राष्ट्र का हो , राज्यों का हो , अल्पसंख्यक मंत्रालय केंद्र का हो , राज्यों का हो , सभी तमाशा बने है , और उर्दू को खत्म किये जा रहे है , भाजपा का अल्पंख्यक विभाग हो , कांग्रेस का अल्पसंख्यक विभाग हो , दांडी यात्राओं का आंदोलन हो , पैराटीचर्स संगठन हों , सरकारें हो , राजनितिक पार्टियों के चुनावी वायदे हों , सब कुछ उर्दू के लिए बेबसी , लाचारी , वायदा खिलाफी के सिवा कुछ साबित नहीं हुआ है , उर्दू का जानकार , उर्दू के लिए संघर्ष करने वाला , सरकार और सरकार में बैठे ज़िम्मेदारों , की आँखों में आँख डालकर , आवाज़ उठाने के लायक भी नहीं , जो लोग इसे मुस्लिम जुबां समझते है , ,वोह नहीं समझते के , मुस्लिम सांसद , विधायक , पार्टियों के गुलाम ओहदेदारान , पार्टी द्वारा , बनाये गये , अल्पसंख्यक विभाग जो भी हो , सभी दुम हिलाने से ज़्यादा कुछ नहीं कर पाते है , ,नतीजा , उर्दू के बजट पर ,कवि सम्मेलन होते है , कार्यक्रम होते है , अनावश्यक खर्चे होते है , लेकिन उर्दू ऐकडमी , नहीं बनाई जाती , वक़्फ़ बोर्ड गठित नहीं होता , अल्पसंख्यक आयोग नहीं बनते , उर्दू निदेशालय गठित नहीं होता , पैराटीचर्स और मदरसों के लिए , ,मदरसा आयोग , या मदरसा बोर्ड का गठन नहीं होता , पैराटीचर्स को सहूलियतें , उनका स्थाईकरण , उन्हें मानदेय वृद्धि नहीं मिलती , मदरसों में सुविधाएँ , पोषाहार , फर्नीचर , खेलकूद के सामान ,भवन निर्माण , सहित अन्य आवश्यक व्यवस्थाएं नहीं दी जाती , प्राइमरी स्कूलों में उर्दू ज़ीरों है ,तो फिर मिडिल में उर्दू कहाँ से आएगी , ,मिडिल में थोड़ी बहुत हुई तो फिर सेकेंडरी , हायर सकेंडरी में उर्दू की गर्दन काट दी जाती है ,,और रही सही कॉलेजों में उर्दू खत्म हो रही है , झूंठे वायदे ,, झूंठी बातें , झूंठी वाहवाही , तमाशे ही तमाशे , लेकिन फिर भी उर्दू क़ौमी एकता की जुबां है ,देश की जुबां है , रोज़गार की जुबां है , देश भर में , हज़ारों लोग , पैराटीचर्स के नाम पर , ऊंट के मुंह में जीरा ही सही , लेकिन कुछ रोज़गार पर तो है , स्कूलों में ,, कॉलेजों में , भी कुछ इस जुबां के नाम पर रोज़गार से लगे है , जबकि कभी कभार कुछ ज़िलों में , कुछ पार्टियों में इस नाम पर धरने , ,प्रदर्शन , जुलुस , यात्रायें निकाल कर , कुछ लोग अपनी पहचान भी बनाते है , कुछ लोग सियासत भी करते है , कुछ लोग हुकूमत से समझौते के नाम पर , अंडर दी टेबल बहुत कुछ करवा लेते है , लेकिन उर्दू की समस्याएं जस की तस है , उर्दू के साथ विश्वासघात , पक्षपात वैसा ही है , मदरसा पैराटीचर्स के साथ , धोखा वैसा ही है , जो लोग उर्दू को सिर्फ मुस्लिमों से जोड़कर इससे नफरत करते है , उनकी जानकारी के लिए बता दूँ के , उर्दू में सरकारी सिस्टम में आरक्षण के नाम पर , अगर सो पोस्टें है ,तो उसमे से ,, 49 भाई बहन , हिन्दू समाज के नौकरी पर आते है ,जबकि मदरसा पैराटीचर्स में भी , यह आंकड़ा इसी तरह का है ,तो भाई जब शायर का कोई मज़हब नहीं , उर्दू पढ़ाने वाले , उर्दू जान्ने वाले , शायर , कवियों , साहित्यकारों , फ़िल्मी डायलॉग , स्क्रिप्ट राइटर , इसके नाम पर रोज़गार पाने वालों का कोई धर्म मज़हब नहीं तो फिर क्यों इसे एक ही धर्म , मज़हब से जोड़कर , इससे नफरत करते हो , इसे तबाह करते हो , कोई भी पार्टी हो , कोई भी कितना ही धर्म निरपेक्ष हो , हाँ उर्दू के साथ पक्षपात करता है , हाँ उर्दू के साथ बलात्कार करता है , और इस पक्षपात पर , उर्दू के कथित सरपरस्त जश्न मानते है ,थोड़ी से घोषणा पर , मालाएं , साफे , पहनते है , पहनवाते हैं , शुक्रियानामों की लाइन लगा देते है , खेर यह उनकी ज़ाती सोच है , उनकी ऐसा करने की आज़ादी है , लेकिन उर्दू तो उर्दू है , भारत माँ की संतान है , यह कहाँ रुकने वाली , यह कहाँ डरने वाली , यह कहाँ खौफ खाने वाले , इस उर्दू ने तो अंग्रेज़ों को भारत से भगाकर , भारत को हिंदी के साथ मिलकर आज़ाद कराया है , तो फिर इन क़ातिलों के हाथ में खंजर हो , चाहें और शमशीरें , यह उर्दू , इन क़ातिलों के वारों से , लहूलुहान भी है , घायल भी है , लेकिन डटी हुई है , मुक़ाबला कर रही है , और अगर उर्दू के जानकार एक जुट हो जाएँ , तो यह सरकारें धुल चाटने लगें , जब अंग्रेज़ डर कर भाग गए , तो यह उर्दू के क़ातिलों की क्या बिसात ,इनके हाथों से खंजर छीनों , इनके हाथों से तलवारें छीनों , इनके हाथों में उर्दू तहज़ीब की मिठास के गुलाब दो , प्यार , खुलूस से , अपनी मांगे बताओ , और चाहे राजस्थान हो , उत्तरप्रदेश हो , बिहार हो , दिल्ली हो , जहाँ भी हो , केंद्र हो , राज्य हों , उर्दू को उसका हक़ दिलवाओ , संघर्ष करो , मुक़ाबला करो , जो लोग दोहरी बातें करते है , झूंठे आश्वासन देते है , उन्हें वोटो के हथियार से , हाशिये पर लाकर खड़ा कर दो , जिस उर्दू के , क़दमों में तख्तो ताज होते थे , अगर तुम एक जुट हुए , अगर हम मुनाफ़िक़ पन छोड़कर उर्दू के दुश्मनों के खिलाफ एक जुट हुए , लामबंद हुए , खुलूस , मोहब्बत , और वोटों की ताक़त के हथियार से , इनसे संघर्ष किया , तो यक़ीनन उर्दू के वायदों के नाम पर धोखाधड़ी करने वालों के तख्त , ताज तुम्हारे क़दमों में होंगे , और यह लोग , ढूंढते रह जाओगे , जैसे जुमलों के साथ नाकाम सियासत के इतिहास में सिसकते रहेंगे , ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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