आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

15 अक्तूबर 2021

बस से उतरकर *जेब* में हाथ डाला।मैं चौंक पड़ा। जेब *कट* चुकी थी

 

*HEART- TOUCHING*
बस से उतरकर *जेब* में हाथ डाला।मैं चौंक पड़ा। जेब *कट* चुकी थी।
*जेब* में था भी क्या ?
कुल *90* रुपए और *एक खत,*
जो मैंने *माँ* को लिखा था कि—
मेरी *नौकरी* छूट गई है; अभी *पैसे* नहीं भेज पाऊँगा।
तीन दिनों से वह *पोस्टकार्ड* जेब में पड़ा था।
*पोस्ट* करने को *मन* ही नहीं कर रहा था।
*90 रुपए* जा चुके थे।
यूँ *90 रुपए* कोई बड़ी रकम नहीं थी,
लेकिन जिसकी *नौकरी छूट* चुकी हो,
उसके लिए *90 रुपए* *नौ सौ* से कम
नहीं होते।
कुछ दिन गुजरे। *माँ* का *खत* मिला।
*पढ़ने* से पूर्व मैं *सहम* गया।
जरूर *पैसे भेजने* को लिखा होगा।….
लेकिन, *खत* पढ़कर मैं *हैरान* रह गया।
*माँ* ने लिखा था— *“बेटा,* तेरा *1000 रुपए*
का भेजा हुआ *मनीआर्डर* मिल गया है।
तू कितना *अच्छा* है रे! *पैसे* भेजने में
कभी *लापरवाही* नहीं बरतता।
मैं इसी *उधेड़- बुन* में लग गया कि आखिर माँ को मनी आर्डर किसने भेजा होगा?
कुछ *दिन* बाद, एक और *पत्र* मिला।
*चंद लाइनें* थीं— *आड़ी तिरछी।*
बड़ी *मुश्किल* से *खत* पढ़ पाया।
लिखा था— भाई, 90 रुपए तुम्हारे और
*910 रुपए* अपनी ओर से मिलाकर मैंने
तुम्हारी *माँ* को *मनीआर्डर* भेज
दिया है। *फिकर न करना।….
*माँ* तो सबकी *एक-जैसी* होती है न।
*क्या तेरी और क्या मेरी*
*वह क्यों भूखी रहे?…*
*तुम्हारा—जेबकतरा👌👌..*
☺☺☺☺☺☺☺☺☺

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...