आपका-अख्तर खान

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07 दिसंबर 2020

तूने बख्शे है जो आजार कहाँ रखूँगा,

 

तूने बख्शे है जो आजार कहाँ रखूँगा,
ये गिरे गुम्बदों मीनार कहाँ रखूँगा..!
मेरा घर है कि किताबो सें भरे है कमरे,
सोच इसमे भला हथियार कहाँ रखूँगा..!
अपने बच्चों सें हर एक जुल्म छुपा लूंगा मगर,
ऐ वक़्त ! तेरे अखबार और दर्द कहाँ रखूँगा.

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