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07 दिसंबर 2020

*ऐसा कहा से लाऊं कि तुझ सा कहें जिसे*

 

*ऐसा कहा से लाऊं कि तुझ सा कहें जिसे*
*✒️ मिर्ज़ा जावेद अली*
सदस्य: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी
▪️यह कुदरत का कानून है कि हर शख्स को मौत का मज़ा चखना है और फिना हो जाने वाली इस दुनिया में कुछ दिन की अस्थायी जिंदगी गुजारने के बाद हमेशा रहने वाली दुनिया की तरफ कूच कर जाना है। लेकिन इस दुनिया में कुछ हस्तियां ऐसी भी होती हैं जिनकी जिंदगी राष्ट्र के लिए अमानत बन जाती है, उनके देहांत से सामाजिक जीवन में एक खला पैदा हो जाता है और ज़माना दूर तक और देर तक उनकी कमी महसूस करता है।
ऐसी ही एक बेहद सम्मानित व्यक्तित्व, महान नेता अहमद पटेल हम से जुदा हो गए । उनके इन्तेकाल से ऐसा लग रहा है की देश की सियासी और समाजी ज़िन्दगी में गम और मायूसी के ऐसे बादल घिर गए हैं जो जल्द हटने वाले नहीं। अज़ीम कायद और दानिश्वर अहमद पटेल की मौत एक महान त्रासदी है, उनके देहांत से देश एक ऐसे रहनुमा से महरूम हो गया है जो ख़ामोशी से मुल्क और मिल्लत की खिदमत को अपना फ़र्ज़ समझता था। जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता की भरपूर हिमायत की और अल्पसंख्यकों के संविधानिक अधिकारों के लिए हमेशा डटे रहे, वह नरम मिजाज़ और शराफत का बेहतरीन नमूना थे।
श्री अहमद पटेल पारदर्शी और सदाचारी चरित्र के साथ एक सच्चे देशभक्त, मानवता के हितैषी, दुरदर्शी एवं उच्च विचार वाले व्यक्ति थे। वह एक ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिनमे भविष्य की आहट सुनने की क्षमता थी और वह केवल अल्पसंख्यकों की ही नहीं बल्कि तमाम कमज़ोर वर्गों की आवाज़ थे, जिसकी दूरदर्शिता आने वाले भारत को देखने में सक्षम थी, उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मुल्क और मिल्लत की खिदमत में लगा दी, वह एक विनम्र व्यक्ति थे, वह हर किसी के साथ अच्छे संबंध चाहते थे और हमेशा भावनाओं और बदले की राजनीति को नापसंद करते थे, इसी कारण वह सभी लोगों में समान रूप से लोकप्रिय थे,
कांग्रेस पार्टी की मौजूदा स्थिति में अहमद भाई की मौत कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके पास कई गुण थे, वह सभी से बात करने का स्वभाव रखते थे और वे सुलह का मार्ग प्रशस्त करने में माहिर थे। उन्होंने प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा की परवाह किए बिना राष्ट्र के लिए ऐसे उल्लेखनीय कार्य किए हैं जिसकि मिसाल मिलना मुश्किल है। उनके इंतकाल से मैंने एक हमदर्द और सरपरस्त को खो दिया है।
1994 में जब मैं NSUI में था तब से मेरा उनसे बहुत करीबी रिशता रहा है। वह मेरे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में बहुत प्रमुख रहे हैं। उन्होंने हमेशा राजनीति के बजाय समाजिक कार्यों में मेरे अंदर रूचि पैदा करने पर जोर दिया। और यही वजह है की जब में यूथ कांग्रेस में था तो 2001 में गुजरात में भयावह भूकंप आया था, अहमद भाई उस तबाही की खबर से बहुत परेशान हो गए थे, वह वहां की पल पल की खबर पर नजर बनाए हुए थे, उन्होंने बड़ी मात्रा में राहत का सामान गुजरात भेजा,जिसे पहुंचाने की जिम्मेदारी मुझे सौंप कर ज़मीनी स्तर पर काम करने के अनुभवों से मुझे परिचित होने का मौका दिया, जिस के बाद से यह प्रक्रिया लंबी होती गई।
उनकी सरपरस्ती में मुझे कांग्रेस पार्टी द्वारा विभिन्न पदों और सम्मानों से सम्मानित किया गया, जिस में "चेयरमैन दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी, अल्पसंख्यक विभाग" "अध्यक्ष चांदनी चौक, शहर जिला कांग्रेस कमेटी" और विषेश रूप से मटिया महल विधानसभा सीट से दो बार प्रत्याशी बनाया जाना शामिल है। मेरे लिए उनके प्यार और स्नेह का यह आलम था कि उन्होंने वालिद के साए से महरूम होने के बाद भी मुझे कभी वालिद की कमी महसूस नहीं होने दिया, उन्होंने मेरी जिंदगी के हर मोड़ पर केवल रहनुमाई ही नहीं की बल्कि मेरे सिर पर हमेशा अपने स्नेह व प्यार का साया इस तरह बनाए रखा, जिस तरह का छाया एक पिता अपने बेटे के सिर पर बनाए रखता है।
वह जाते जाते अपने साथ ईमानदारी, मानवता, भाईचारा, संस्कृति, करूणा, पूर्वाग्रह, प्रेम, शालिनता, पवित्रता जैसे गुणों को भी अपने साथ ले गए,जो इस शैली के साथ एक ही व्यक्ति में बहुत कम देखने को मिलते हैं।
*बिछड़ा कुछ इस अंदाज़ से की रुत ही बदल गयी।*
*एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।*
अहमद पटेल जिनको मरहूम लिखने से मेरी ऊँगली काँप रही है, वह मेरे समाजिक-राजनीतिक जीवन के आदर्श थे, मैंने उनके जिवन से बहुत कुछ सीखा है,गहरे अनुभव और अवलोकन प्राप्त किया है।
कुदरत के फैसले के सामने हम लाचार हैं,अब धैर्य (सब्र) रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अब मैं अपने जीवन के बाकी दिनों में उनके नक्शे-कदम पर चलने के लिए संकल्पित हूं और इस इच्छा की पूर्ति को मैं उनके लिए सबसे अच्छी श्रद्धांजलि (खराज-ए-अकीदत) मानता हूं। दुआ है कि अल्लाह मेरे साहब की मगफिरत करे और उनके चाहने वालों को सब्र दे। आमीन
*मेरा वजूद भी साथ ले गया अपने।*
*अजीब शख्स था तन्हा जो कर गया मुझको।*

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