आ जाओ एक बार सखी
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आज भी प्रतीक्षा है
अनायास मिल जाने की
झुलसे हुए इन बागों में
फिर से बहार आने की
भंवरे जो अगोचर हैं
गुंजार करते हैं आएंगे
रंग-बिरंगे खग भी अपना
कलरव मधुर सुनाएंगे
ठूंठ हुए इन शाखों पर
पुनः हरियाली आएगी
सूखे पत्तों को हटाने
वासंती बुहार लगाएगी
कोंपल खिलेंगे नए-नए
नायाब कुसुम बचाने को
करतब दिखलाएंगे सब अपना
तेरा मन बहलाने को
आओ तो एक बार सही
धरा पर होंगे बिखरे फूल
कंकड़ होंगे मलमल जैसे
गुदगुदी करेगी चुभती शूल
नयन निहारे हैं अपलक
पाने को तेरी एक झलक
मन का है मनुहार सखी
आ जाओ एक बार सखी।
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