हक़ की बात करूँ
या फिर तोहफे लेकर
तुम्हारी तरह गुलाम बन जाऊं ,
मेरे अपनों से नाइंसाफी
मेरे अपनों के हक़ से छिना झपटी
ना बाबा ना
यह तख्त भी तुम रखो
यह ताज भी तुम रखो
यह ऐशो आराम
यह जी हुज़ूरी भी तुम रखो
में तो मेरे अपनों के हक़ के लिए
जंग का ऐलान करता हूँ ,,
यह मेरा मुल्क
यह मेरा संविधान
मुझे , मेरे अपनों को , जो हक़ देता है
बस मेरे मुल्क की तरक़्क़ी
मेरे मुल्क के संविधान
मेरे मुल्क के मेरे अपनों के लिए
में जंग का ऐलान करता हूँ ,,, अख्तर
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