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21 नवंबर 2020

लड़ना था,मनुष्य को,भुखमरी से,कृतिम रूप से,पूंजीपतियों द्वारा,निर्मित की गई,गरीबी

लड़ना था,मनुष्य को,भुखमरी से,कृतिम रूप से,पूंजीपतियों द्वारा,निर्मित की गई,गरीबी-लाचारी से-दरिद्रता से-उनके द्वारा,निर्धन का,हक-मारने वाली-कुटिल नीतियो से,अमीरों द्वारा-गरीबों का,शोषण किये जाने कि रीत-से, जुल्मी शषकों/-की,पूंजी पतियों को,संरक्षण देकर,दबे-कुचले,और,अंतिम छोर पर,न्याय पाने के लिये, तरस रहे,लाचार देशवासी के साथ हो रहे अन्याय -के विरुद्ध,भेदभाव-पक्षपात पूर्ण-और-पूंजीपतियों को-प्रोउत्साहित करनें कि-शाषन-कि-अन्याय-पूर्ण नीति के विरुद्ध, मगर-दुर्भाग्य-कि*सही और गलत/न्याय-अन्याय/उचित-अनुचित,की,जानकारी-समझनें,और-सत्य का भान होने के पश्चात, भी, देशवासियों को-उपरोक्क्त का अहसास, शाषन द्वारा,कभी होनें ही,नहीं दिया गया,और, इम्पीरियल-साम्राज्यवाद द्वारा-विरासत में मिली,राष्ट्र के लिये-घातक सिद्ध होने वाली-उनकी,सफलतम-नीति,*फुट डालो और राज करो*,के फार्मूले,का इस्तेमाल,-सत्ताधारी-नेताओं/शाशकों/प्रशाश्कों-द्वारा,इतनी,*खूबसूरती-चालाकी-और-बर्बरता* से किया गया,कि-देशवाशी-भूल भुलैया में,उलझकर-कुचक्र में फंस कर,आपस में ही-जात-पात-ऊंच-नींच-धर्म- मजहब-उलझकर-इतने,मजबूर हो गये,कि-अपनी-व्यक्तिगत-उन्नति-प्रगर्ति-तरक्की-और उत्थान कि-बाँतें-करना-लगभग-लगभग-भूल ही गये, *और-जैसा हैं,जिस हाल में हैं,जीना हैं,जीना ही पड़ेगा*,को अपनी *लाचारी-मजबूरी/अपना भाग्य* मानकर-हार मान कर,हथियार डाल कर,बैठ गये*। प्रेक्षक:::पंडित,**आर.के.कौशिकजी**

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