तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ,
कोई प्यार जताये तो जेब सम्भाल लेता हूँ ।
थप्पड़ के बाद नहीं करता, दूसरा गाल आगे,
खंजर खींचें कोई,तो तलवार निकाल लेता हूँ।
वक़्त था सांप का तस्सवुर डरा देता था,
अब एक आध , मैं आस्तीन में पाल लेता हूँ ।
मुझे फांसने की कहीं साज़िश तो नहीं,
हर मुस्कान को ठीक से पड़ताल लेता हूँ ।
बहुत जला चुका ऊंगलियाँ , पराई आग में,
अपने मसले में कोई बुलाये, तो टाल लेता हूँ ।
सहेज के रखा था दिल , जब शीशे का था,
पत्थर का हो चुका,अब मज़े से उछाल लेता हूँ ।
हो चुकीं हैं अब' की तूफानों से दोस्तियां,
कश्ती को बेफिक्र लहरों पर डाल लेता हूँ ।
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