और ये काम न तो उनके लिए मुनासिब था और न वह कर सकते थे (211)
बल्कि वह तो (वही के) सुनने से महरुम हैं (212)
(ऐ रसूल) तुम ख़़ुदा के साथ किसी दूसरे माबूद की इबादत न करो वरना तुम भी मुबतिलाए अज़ाब किए जाओगे (213)
और (ऐ रसूल) तुम अपने क़रीबी रिश्तेदारों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराओ (214)
और जो मोमिनीन तुम्हारे पैरो हो गए हैं उनके सामने अपना बाजू़ झुकाओ (215)
(तो वाज़ेए करो) पस अगर लोग तुम्हारी नाफ़रमानी करें तो तुम (साफ़ साफ़) कह दो कि मैं तुम्हारे करतूतों से बरी उज़ जि़म्मा हूँ (216)
भरोसा रखो कि जब तुम (नमाजे़ तहज्जुद में) खड़े होते हो (218)
और सजदा (219)
करने वालों (की जमाअत) में तुम्हारा फिरना (उठना बैठना सजदा रुकूउ वगै़रह सब) देखता है (220)

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