जिन्हे मांगों पर चर्चा करना ,, मांगों को मानकर फैसला लागू करने के बीच का फ़र्क़ पता नहीं , वोह सिर्फ लॉलीपॉप ही खा सकते है ,तहज़ीब की जुबान उर्दू , के मामले में जांबाज़ी जंग से उनका दूर का भी रिश्ता समझना बेमानी है ,,,, प्रायमरी शिक्षा के लोग भला कभी सेकेंडरी , हायर सेकेंडरी , कॉलेज शिक्षा में उर्दू का फैसला कर सकते है , वोह तो चर्चा एक दिन क्या ,,कई सालों तक कर सकते है , यही तो फ़र्क़ है, ,गुर्जर भाइयों में , और आप भाइयों में ,, खेर मदरसा पैराटीचर्स की फ़ाइल बजट सेशन मार्च से भी छ महीने , आगे सितंबर 2021 वोह भी दो माह ऊपर नीचे ,, 18000 रूपये आज से ही देने की झूंठी बात , बजट कहाँ से आता छः करोड़ प्रतिमाह का ,, खेर तुम हार गए ,तक गए , तो क्या तुम पुरे ठेकेदार तो नहीं , जंग तो जारी रहेगी ,तुम्हारी चर्चाये तुम करो ,,, अरे चर्चा भी , सरकार के किसी मंत्री से ही कर लेते , मुख्यमंत्री से नहीं हो पा रही थी तो , चलो अगर हो जाए तो सरकार की वॉल पर घोषणाएं पढ़कर ,उसका स्क्रीन शॉट लेकर आपको भेजेंगे , आप भी हमे भेजना ,, जनाब उर्दू किसी व्यक्ति ,किसी मज़हब की मोहताज जुबां नहीं ,, आज भी आरक्षण नियमों के तहत , और कॉम्पिटिशन में वरीयता नियमों के तहत ,पैराटीचर्स , उर्दू के टीचर्स में ,,हमारे हिन्दू भाई भी सरकारी नौकरी में है , उनके साथ तो चर्चा के नाम पर गुमराही नहीं ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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