आपका-अख्तर खान

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21 अक्तूबर 2020

और न कोई दिलबन्द दोस्त

 और न कोई दिलबन्द दोस्त हैं (101)
तो काश हमें अब दुनिया में दोबारा जाने का मौक़ा मिलता तो हम (ज़रुर) इमान वालों से होते (102)
इबराहीम के इस किस्से में भी यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें से अक्सर इमान लाने वाले थे भी नहीं (103)
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है (104)
(यूँ ही) नूह की क़ौम ने पैग़म्बरो को झुठलाया (105)
कि जब उनसे उन के भाई नूह ने कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते मै तो तुम्हारा यक़ीनी अमानत दार पैग़म्बर हूँ (106)
तुम खु़दा से डरो और मेरी इताअत करो (107)
और मैं इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ उजरत तो माँगता नहीं (108)
मेरी उजरत तो बस सारे जहाँ के पालने वाले ख़ुदा पर है (109)
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो वह लोग बोले जब कमीनो मज़दूरों वग़ैरह ने (लालच से) तुम्हारी पैरवी कर ली है (110)

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