तुम अपनों में
झाँक कर देखो ,,
तुम में तुम्हारे गद्दार हैं ,,
तुम्हीं में है
तुम्हारे मुखबीर
तुम्हीं में तुम्हारा ,व्यापार है ,,
ज़रा सम्भलो
वोह जो गुलाम
तुम्हे भटकाते है
उनसे अलग होकर ,
खुद अपनी ज़रूरतों
खुद अपने मुस्तक़बिल
खुद तुम्हारे साथ हुए धोखों को
सोचना ज़रूर ,, ,अख्तर
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