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26 सितंबर 2020

धर्म, विद्रोह मांगता है, सत्य की प्रतिष्ठा के लिये,

 

धर्म, विद्रोह मांगता है,
सत्य की प्रतिष्ठा के लिये,
न्याय की स्थापना के लिए,
और न्याय क्या है ?
न्याय ही सत्य है, और सत्य ही धर्म,
पर,इसे जानने को चाहिए विवेक।।
लेकिन न्याय योग्य "विवेक" की,
गर्भवती माता "बुद्धि" के,
गर्भपात को, सत्ता ने रचा,
"तथाकथित धर्मों" का षड्यंत्र।।
इन धर्मों में बुद्धि को सिखाया,
आज्ञाकारी होना सिखाया,
मानना सिखाया, जानने से रोका
तर्क को रोका, वितर्क को बढाया।।
सिखाया कि बच्चों को बनाओ, आज्ञाकारी,
मार से, हथियार से, जनता को दबाओ,
नाम लो धर्म का, करो अधर्म ।
क्योंकि धर्म के नाम पर होने वाले,
अधर्म से मिलेगा, सत्ता और धन सुख।।
जनता को बना दो, मानसिक पंगू,
फिर जो तुम पुकारोगे ,
मानसिक अपंग, वही दोहराएंगे,
न भूत दिखेगा, न भविष्य देख पाएंगे।।
बुद्धि को इसी धर्म में मोक्ष दिखेगा,
इसी धर्म में दिखेगा सत्य।।
और फिर अगर कोई कृष्ण,
सत्य धर्म स्थापना के लिए,
करे "गीता" का आह्वान,
ठहराए गांडीव धारण को उचित,
तो उसे ही विधर्मी ठहराकर,
उसे ही दबाएगी यह सत्ता।।
पर कृष्ण कहाँ रुकने वाले?
धर्म की स्थापना को,
कृष्ण आएंगे, हर युग।।
आज्ञाकारिता के विरुद्ध,
विद्रोह की प्रतिस्थापना को,
कृष्ण आएंगे, हर युग।।
न्याय की प्रतिष्ठा को,
अपने ही सगों, पार्टीयों,
के विरूद्ध खड़े होने को,
प्रेरित कर कुछ नए,
अर्जुन पैदा करने को,
कृष्ण आएंगे, हर युग।।

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