आपका-अख्तर खान

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03 अगस्त 2020

बहन अपनी हो या दूसरे की ,,कोई भी महिला हो ,सभी की इज़्ज़त ,अस्मत , ,सुरक्षा ,संरक्षण , ,कल्याण व्यवस्थाओं की हम शपथ ले ,, , शपथ ले भी और इस शपथ को क्रियांवित भी करे ,

बहन अपनी हो या दूसरे की ,,कोई भी महिला हो ,सभी की इज़्ज़त ,अस्मत , ,सुरक्षा ,संरक्षण , ,कल्याण व्यवस्थाओं की हम शपथ ले ,, , शपथ ले भी और इस शपथ को क्रियांवित भी करे , अपनी जीवन शैली में अंगीकार ,स्वीकार करें ,, आपकी पत्नी भी किसी की बहन है ,,आपकी बहन भी किसी की पत्नी है ,,बेटियां है ,सभी की सुरक्षा ,, संरक्षण हमारा दायित्व है ,,रक्षाबंधन ,सिर्फ एक दिन का त्यौहार नहीं ,बेटियों की सुरक्षा संरक्षण का ,, वार्षिक लेखा जोखा है ,, रिनिवल है ,, देख लीजिये आज बहनों की इज़्ज़त , अस्मत , कितने खतरे में है ,इज़्ज़त ,, अस्मत ,धर्म मज़हब के नाम पर लूटी जा रही है ,अपमान किया जा रहा है ,,बहनों को ,अगर वोह किसी की पत्नी ,बहु ,है ,तो उन्हें दहेज़ के नाम पर ,,दूसरे और कारणों से प्रताड़ित किया जा रहा है ,ज़रा सोचिये हमारा भारत देश , ,जो बहनों के पवित्र बंधन को स्वीकार भी करता है ,अंगीकार भी करता है ,,हर रोज़ यहाँ क्यूं , बहनों की इज़्ज़त ,, अस्मत , खतरे में पढ़ जाती है ,, क्यों छोटी छोटी बच्चियों पर अत्याचार हो रहे है ,,क्यों हमे पोक्सो कोर्ट खोलना पढ़ी है ,, क्यों दहेज़ प्रताड़ना के मामले ,,घरेलू हिंसा के मामले ,,देश की अदालतों में लाखों की संख्या में बढ़ रहे है ,, यह एक सवाल है , हमारी परवरिश पर ,एक माँ अपने बेटे को किस तरह की परवरिश दे रही है ,एक बहन , अपने भाई को किस तरह की सीख दे रही है ,क्योंकि अपराध में शामिल हर पुरुष , किसी का भाई ,किसी का बैठा ,,कई तो शादी शुदा भी होते है ,, ऐसे में हमे अपने संस्कार ,,अपनी जीवन शैली ,, अपने घर के पुरुषों के संस्कारों की सीख में ,निगरानी बढ़ाना होगी , हम बेटियों पर निगरानी बढ़ाते है ,बेटियों को दोष देते है , लेकिन अपराधी तो बेटे होते है ,बात किसी एक धर्म मज़हब की नहीं है ,,यह बहने ,हिन्दुओं की भी होती ,है ,,यह बहने ,मुसलमानों की भी होती है ,यह बहने सिक्ख भाइयों की भी होती है ,यह बहने ,जेन , बौद्ध लोगों की भी होती है ,क्रिश्चियन की भी होती है ,,बहनों के लिए सुरक्षा , रक्षा का यह त्यौहार , रक्षाबंधन किसी एक धर्म मज़हब के लिए नहीं ,सभी धर्म मज़हबों के लोगों के लिए , मुझ पर ,तुम पर ,हम पर लागू है ,, इसका सम्मान करना चाहिए,, देश में विश्व महिला उत्पीड़न की रिपोर्टों को देखकर ,,धर्म मज़हब से जुड़े सभी धर्मों के लोगों को ,पुरुषों में महिलाओं के प्रति सम्मान ,,के संस्कार को पुनर्जीवित करने के लिए ,, मज़हबी अभियान चलाना चाहिए ,, आज कोई भी बहन बेटी ,, सड़क पर अकेली निकल जाए तो ,, घर जब तक वापस नहीं पहुंचे सभी के धक् धक करते है ,,घरों में तक बेटियों , बहने अब सुरक्षित नहीं रहीं ,, चलिए ,,सुनिए ,एक बेटी ,सात फेरे , लेकर ,, निकाह क़ुबूल है के संस्कार के साथ , अपना घर बार छोड़ कर ,अपने पति के संरक्षण में आती है ,लेकिन कुछ एक अपवादों को छोड़ कर वोह बेटी , एक पत्नी ,एक बहु , एक भाभी ,,भावज , के रूप में समझौता करती है ,कुछ खुश भी रहती है ,लेकिन कुछ ऐसी भी है ,जिन्हे जला दिया जाता है ,आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है ,, कुछ ऐसी है ,जो अदालतों में अपने साथ हुए ज़ुल्म ज़्यादती के इंसाफ के लिए ,गुज़ारा खर्च के लिए ,, महर की राशि वसूलने के लिए ,,तलाक़ की गुहार के लिए अदालतों के चक्कर ,पर चक्कर लगाती है ,इस भारत देश में जहाँ महिलाओं को देवी कहा गया ,जहाँ हर साल महिलाओं की सुरक्षा , संरक्षण का संकल्प लिया जाता है , ऐसे देश के नेताओं को विचार करना चाहिए ,, महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न मामलों में पोक्सो कोर्ट हो ,, महिला उत्पीड़न की कोर्ट हो ,, दहेज़ प्रताड़ना के मामले हो , घरेलू हिंसा के मामले हो ,,,, महर वसूली के मामले हों ,, पारिवारिक न्यायालय में तलाक़ ,, गुज़ारे खर्च के मामले हो ,दीगर मामले हो ,सभी में ,,दिन प्रति दिन सुनवाई के कार्यकम के साथ अधिकतम एक माह में फैसला सुनाने के लिए अदालतों को निर्देश हो , कोई अगर मगर ,किन्तु , परन्तु नहीं ,,, चाहे रविवार हो ,,चाहे सोमवार हो ,जज के दिमाग में यह अनुशासित व्यवस्था हो के वोह हर हाल में अधिकतम एक माह में इन मामलों के फैसले दे ,, अगर जज इसमें नाकामयाब रहे तो ऐसे जजों के खिलाफ कार्यवाही के प्रावधान हों ,,, पुलिस को महिला उत्पीड़न के सम्मन ,,गुज़ारा खर्च राशि की वसूली ,गवाहों की उपस्थिति में असफल रहने पर ,,उनके निलंबन का क़ानून हो ,, देश में आज लाखों लाख महिलाये गुज़ारा खर्च आदेश के बाद भी ,, गुज़ारा खर्च सिर्फ पुलिस की मिली भगत , और तारीख पे तारीख के खेल की वजह से इंसाफ से वंचित है ,, देश को सख्त होना होगा ,,देश को ऐसा माहौल बनाना होगा ,के महिलाओं की तरफ आँख उठा कर देखने वाले हर शख्स , चाहे वोह कोई भी किसी भी धर्म , मज़हब का क्यों न हो ,उसे ऐसी सबक़ सिखाने वाली सज़ा मिले जो फिर पुनरावृत्ति से ,दूसरों की रूह काँप जाए ,, गुज़ारा खर्च ,प्रताड़ना के इंसाफ के लिए , अधिकतम कोर्ट की स्थापना ,,आवश्यक समयबद्ध दिन प्रति दिन ,,चाहे चौबीस घंटे सुनवाई करना पढ़े ,एक माह के निस्तारण की शर्त पर , फैसला ज़रूरी हो , क्या हम ऐसा कर पाएंगे ,क्या हम इस दिशा में सोच पाएंगे ,क्या हम इन सुझावों से सहमत हूँ पाएंगे ,अगर हाँ तो राखी की सभी को शुभकामनाये ,बधाई ,अगर हंम इसमें लापरवाह है ,,अगर बहनों की सुरक्षा ,संरक्षण के इस त्यौहार राखी के बंधन को हम रस्म मान रहे ,है ,, तो फिर लानत है हम पर ,हमे ऐसी रस्म अदायगी ,हरगिज़ हरगिज़ नहीं चाहिए ,,, ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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