आपका-अख्तर खान

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06 जुलाई 2020

मैं छिलके सा व्यर्थ

मैं छिलके सा व्यर्थ
कितने ताप झेलकर
अपने गर्भ में
सहेजे रखता हूँ
अर्थ
सर्वस्व त्यागकर
लेने देता हूँ
तुम्हे अपने
....मधुर...
अर्थ का अनुभव
और तुम कृतघ्न से
फेंकते हो मुझे कूड़ेदान में
पर मेरा स्वभाव है
निरवैर हो गल जाना
मौका पाते ही मिट्टी में..
मिल जाना...
किसी जड़ से
लिपट जाना....
और फिर देना
अपने जैसों को
पोषण......

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