﴾ 41 ﴿ और हमने विविध प्रकार से इस क़ुर्आन में (तथ्यों का) वर्णन कर दिया है, ताकि लोग शिक्षा ग्रहण करें, परन्तु उसने उनकी घृणा को और अधिक कर दिया।
﴾ 42 ﴿ आप कह दें कि यदि अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य होते, जैसा कि वे (मिश्रणवादी) कहते हैं, तो वे अर्श (सिंहासन) के स्वामी (अल्लाह) की ओर अवश्य कोई राह[1] खोजते।
1. ताकि उस से संघर्ष कर के अपना प्रभुत्व स्थापित कर लें।
﴾ 43 ﴿ वह पवित्र और बहुत उच्च है, उन बातों से जिन्हें वे बनाते हैं।
﴾ 44 ﴿ उसकी पवित्रता का वर्णन कर रहे हैं सातों आकाश तथा धरती और जो कुछ उनमें है और नहीं है कोई चीज़ परन्तु वह उसकी प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन कर रही है, किन्तु तुम उनके पवित्रता गान को समझते नहीं हो। वास्तव में, वह अति सहिष्णु, क्षमाशील है।
﴾ 45 ﴿ और जब आप क़ुर्आन पढ़ते हैं, तो हम आपके बीच और उनके बीच, जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं लाते, एक छुपा हुआ आवरण (पर्दा) बना देते[1] हैं।
1. अर्थात प्रलोक पर ईमान न लाने का यही स्वभाविक परिणाम है कि क़ुर्आन को समझने की योग्यता खो जाती है।
﴾ 46 ﴿ तथा उनके दिलों पर ऐसे खोल चढ़ा देते हैं कि उस (क़ुर्आन) को न समझें और उनके कानों में बोझ और जब आप अपने अकेले पालनहार की चर्चा क़ुर्आन में करते हैं, तो वह घृणा से मुँह फेर लेते हैं।
﴾ 47 ﴿ और हम उनके विचारों से भली-भाँति अवगत हैं, जब वे कान लगाकर आपकी बात सुनते हैं और जब वे आपस में कानाफूसी करते हैं, जब वे अत्याचारी कहते हैं कि तुम लोग तो बस एक जादू किये हुए व्यक्ति का अनुसरण[1] करते हो।
1. मक्का के काफ़िर छुप-छुप कर क़ुर्आन सुनते। फिर आपस में प्रामर्श करते कि इस का तोड़ किया हो? और जब किसी पर संदेह हो जाता कि वह क़ुर्आन से प्रभावित हो गया है तो उसे समझाते कि इस के चक्कर में क्या पड़े हो, इस पर किसी ने जादू कर दिया है। इस लिये बहकी-बहकी बातें कर रहा है।
﴾ 48 ﴿ सोचिए कि वे आपके लिए कैसे उदाहरण दे रहे हैं? अतः वे कुपथ हो गये, वे सीधी राह नहीं पा सकेंगे।
﴾ 49 ﴿ और उन्होंने कहाः क्या हम, जब अस्थियाँ और चूर्ण-विचूर्ण हो जायेंगे तो क्या हम वास्तव में, नई उत्पत्ति में पुनः जीवित कर दिये[1] जायेंगे?
1. ऐसी बात वह परिहास अथवा इन्कार के कारण कहते थे।
﴾ 50 ﴿ आप कह दें कि पत्थर बन जाओ या लोहा।
﴾ 42 ﴿ आप कह दें कि यदि अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य होते, जैसा कि वे (मिश्रणवादी) कहते हैं, तो वे अर्श (सिंहासन) के स्वामी (अल्लाह) की ओर अवश्य कोई राह[1] खोजते।
1. ताकि उस से संघर्ष कर के अपना प्रभुत्व स्थापित कर लें।
﴾ 43 ﴿ वह पवित्र और बहुत उच्च है, उन बातों से जिन्हें वे बनाते हैं।
﴾ 44 ﴿ उसकी पवित्रता का वर्णन कर रहे हैं सातों आकाश तथा धरती और जो कुछ उनमें है और नहीं है कोई चीज़ परन्तु वह उसकी प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन कर रही है, किन्तु तुम उनके पवित्रता गान को समझते नहीं हो। वास्तव में, वह अति सहिष्णु, क्षमाशील है।
﴾ 45 ﴿ और जब आप क़ुर्आन पढ़ते हैं, तो हम आपके बीच और उनके बीच, जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं लाते, एक छुपा हुआ आवरण (पर्दा) बना देते[1] हैं।
1. अर्थात प्रलोक पर ईमान न लाने का यही स्वभाविक परिणाम है कि क़ुर्आन को समझने की योग्यता खो जाती है।
﴾ 46 ﴿ तथा उनके दिलों पर ऐसे खोल चढ़ा देते हैं कि उस (क़ुर्आन) को न समझें और उनके कानों में बोझ और जब आप अपने अकेले पालनहार की चर्चा क़ुर्आन में करते हैं, तो वह घृणा से मुँह फेर लेते हैं।
﴾ 47 ﴿ और हम उनके विचारों से भली-भाँति अवगत हैं, जब वे कान लगाकर आपकी बात सुनते हैं और जब वे आपस में कानाफूसी करते हैं, जब वे अत्याचारी कहते हैं कि तुम लोग तो बस एक जादू किये हुए व्यक्ति का अनुसरण[1] करते हो।
1. मक्का के काफ़िर छुप-छुप कर क़ुर्आन सुनते। फिर आपस में प्रामर्श करते कि इस का तोड़ किया हो? और जब किसी पर संदेह हो जाता कि वह क़ुर्आन से प्रभावित हो गया है तो उसे समझाते कि इस के चक्कर में क्या पड़े हो, इस पर किसी ने जादू कर दिया है। इस लिये बहकी-बहकी बातें कर रहा है।
﴾ 48 ﴿ सोचिए कि वे आपके लिए कैसे उदाहरण दे रहे हैं? अतः वे कुपथ हो गये, वे सीधी राह नहीं पा सकेंगे।
﴾ 49 ﴿ और उन्होंने कहाः क्या हम, जब अस्थियाँ और चूर्ण-विचूर्ण हो जायेंगे तो क्या हम वास्तव में, नई उत्पत्ति में पुनः जीवित कर दिये[1] जायेंगे?
1. ऐसी बात वह परिहास अथवा इन्कार के कारण कहते थे।
﴾ 50 ﴿ आप कह दें कि पत्थर बन जाओ या लोहा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)