औरत की हँसी,
चुभने सी लगती है किसी को,
औरत का प्रेम करना
निर्लज्ज होना-सा लगता है किसी को,
औरत का सवाल करना,
हुकूमत के खिलाफ-सा लगता है किसी को!!
हे औरत,
तू समझती है न यह जाल!!
तू कर प्रेम,
कि,अब लोग प्रेम करना भूलते जा रहे हैं!
तू उठा कलम,
और कर हस्ताक्षर...
अपने चरित्र प्रमाण पत्र पर,
कि, तेरे चरित्र प्रमाण पत्र पर,
अब किसी और के हस्ताक्षर,अच्छे नहीं लगते...
चुभने सी लगती है किसी को,
औरत का प्रेम करना
निर्लज्ज होना-सा लगता है किसी को,
औरत का सवाल करना,
हुकूमत के खिलाफ-सा लगता है किसी को!!
हे औरत,
तू समझती है न यह जाल!!
तू कर प्रेम,
कि,अब लोग प्रेम करना भूलते जा रहे हैं!
तू उठा कलम,
और कर हस्ताक्षर...
अपने चरित्र प्रमाण पत्र पर,
कि, तेरे चरित्र प्रमाण पत्र पर,
अब किसी और के हस्ताक्षर,अच्छे नहीं लगते...
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