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28 जुलाई 2020

ख़्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूँ ही चलता जाऊँगा

ख़्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूँ ही चलता जाऊँगा फिर जब ये दोनों उन दोनों दरियाओं के मिलने की जगह पहुँचे तो अपनी (भुनी हुयी) मछली छोड़ चले तो उसने दरिया में सुरंग बनाकर अपनी राह ली (61)
फिर जब कुछ और आगे बढ़ गए तो मूसा ने अपने जवान (वसी) से कहा (अजी हमारा नाश्ता तो हमें दे दो हमारे (आज के) इस सफर से तो हमको बड़ी थकन हो गई (62)
(यूशा ने) कहा क्या आप ने देखा भी कि जब हम लोग (दरिया के किनारे) उस पत्थर के पास ठहरे तो मै (उसी जगह) मछली छोड़ आया और मुझे आप से उसका जि़क्र करना शैतान ने भुला दिया और मछली ने अजीब तरह से दरिया में अपनी राह ली (63) मूसा ने कहा वही तो वह (जगह) है जिसकी हम जुस्तजू {तलाश} में थे फिर दोनों अपने क़दम के निशानों पर देखते देखते उलटे पाँव फिरे (64)
तो (जहाँ मछली थी) दोनों ने हमारे बन्दों में से एक (ख़ास) बन्दा खिज्र को पाया जिसको हमने अपनी बारगाह से रहमत (विलायत) का हिस्सा अता किया था (65)
और हमने उसे इल्म लदुन्नी (अपने ख़ास इल्म) में से कुछ सिखाया था मूसा ने उन (खि़ज्र) से कहा क्या (आपकी इजाज़त है कि) मै इस ग़रज़ से आपके साथ साथ रहूँ (66)
कि जो रहनुमाई का इल्म आपको है (ख़ुदा की तरफ से) सिखाया गया है उसमें से कुछ मुझे भी सिखा दीजिए खिज्र ने कहा (मै सिखा दूँगा मगर) आपसे मेरे साथ सब्र न हो सकेगा (67)
और (सच तो ये है) जो चीज़ आपके इल्मी अहाते से बाहर हो (68)
उस पर आप सब्र क्यों कर कर सकते हैं मूसा ने कहा (आप इत्मिनान रखिए) अगर ख़ुदा ने चाहा तो आप मुझे साबिर आदमी पाएँगें (69)
और मै आपके किसी हुक्म की नाफरमानी न करुँगा खिज्र ने कहा अच्छा तो अगर आप को मेरे साथ रहना है तो जब तक मै खुद आपसे किसी बात का जि़क्र न छेड़ो (70)

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