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09 जुलाई 2020

मनुष्य (क्षुब्ध होकर) अभिशाप करने लगता[1] है, जैसे भलाई के लिए प्रार्थना करता है और मनुष्य बड़ा ही उतावला है

11 ﴿ और मनुष्य (क्षुब्ध होकर) अभिशाप करने लगता[1] है, जैसे भलाई के लिए प्रार्थना करता है और मनुष्य बड़ा ही उतावला है।
1. अर्थात स्वयं को और अपने घराने को शापने लगता है।
12 ﴿ और हमने रात्री तथा दिवस को दो प्रतीक बनाया, फिर रात्री के प्रतीक को हमने अन्धकार बनाया तथा दिवस के प्रतीक को प्रकाशयुक्त, ताकि तुम अपने पालनहार के अनुग्रह की (जीविका) की खोज करो और वर्षों तथा ह़िसाब की गिनती जानो तथा हमने प्रत्येक चीज़ का सविस्तार वर्णन कर दिया।
13 ﴿ और प्रत्येक मनुष्य के कर्मपत्र को हमने उसके गले का हार बना दिया है और हम उसके लिए प्रलय के दिन एक कर्मलेख निकालेंगे, जिसे वह खुला हुआ पायेगा।
14 ﴿ अपना कर्मलेख पढ़ लो, आज तू स्वयं अपना ह़िसाब लेने के लिए पर्याप्त है।
15 ﴿ जिसने सीधी राह अपनायी, उसने अपने ही लिए सीधी राह अपनायी और जो सीधी राह से विचलित हो गया, उसका (दुष्परिणाम) उसीपर है और कोई दूसरे का बोझ (अपने ऊपर) नहीं लादेगा[1] और हम यातना देने वाले नहीं हैं, जब तक कि कोई रसूल न भेजें[2]
1. आयत का भावार्थ यह है कि जो सदाचार करता है, वह किसी पर उपकार नहीं करता। बल्कि उस का लाभ उसी को मिलना है। और जो दुराचार करता है, उस का दण्ड भी उसी को भोगना है। 2. ताकि वे यह बहाना न कर सकें कि हम ने सीधी राह को जाना ही नहीं था।
16 ﴿ और जब हम किसी बस्ती का विनाश करना चाहते हैं, तो उसके सम्पन्न लोगों को आदेश[1] देते हैं, फिर वे उसमें उपद्व करने लगते[2] हैं, तो उसपर यातना की बात सिध्द हो जाती है और हम उसका पूर्णता उनसूलन कर देते हैं।
1. अर्थात आज्ञा पालन का। 2. अर्थात हमारी आज्ञा का। आयत का भावार्थ यह है कि समाज के सम्पन्न लोगों का दुष्कर्म, अत्याचार और अवैज्ञा पूरी बस्ती के विनाश का कारण बन जाती है।
17 ﴿ और हमने बहुत-सी जातियों का नूह़ के पश्चात् विनाश किया है और आपका पालनहार अपने दासों के पापों से सूचित होने-देखने को बहुत है।
18 ﴿ जो संसार ही चाहता हो, हम उसे यहीं दे देते हैं, जो हम चाहते हैं, जिसके लिए चाहते हैं। फिर हम उसका परिणाम (परलोक में) नरक बना देते हैं, जिसमें वह निंदित-तिरस्कृत होकर प्रवेश करेगा।
19 ﴿ तथा जो परलोक चाहता हो और उसके लिए प्रयास करता हो और वह एकेश्वरवादी हो, तो वही हैं, जिनके प्रयास का आदर सम्मान किया जायेगा।
20 ﴿ हम प्रत्येक की सहायता करते हैं, इनकी भी और उनकी भी और आपके पालनहार का प्रदान (किसी से) निषेधित (रोका हुआ) नहीं[1] है।
1. अर्थात अल्लाह संसार में सभी को जीविका प्रदान करता है।

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