﴾ 41 ﴿ तथा जो लोग अल्लाह के लिए हिजरत (प्रस्थान) कर गये, अत्याचार सहने के पश्चात्, तो हम उन्हें संसार में अच्छा निवास्-स्थान देंगे और परलोक का प्रतिफल तो बहुत बड़ा है, यदि वे[1] जानते।
1. इन से अभिप्रेत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वह अनुयायी हैं, जिन को मक्का के मुश्रिकों ने अत्याचार कर के निकाल दिया। और ह़ब्शा और फिर मदीना हिजरत कर गये।
﴾ 42 ﴿ जिन लोगों ने धैर्य धारण किया तथा अपने पालनहार पर ही वे भरोसा करते हैं।
﴾ 43 ﴿ और (हे नबी!) हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजे, वे सभी मानव-पुरुष थे। जिनकी ओर हम वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे। तो तुम ज्ञानियों से पूछ लो, यदि (स्वयं) नहीं[1] जानते।
1. मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यदि अल्लाह को कोई रसूल भेजना होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता। उसी पर यह आयत उतरी। ज्ञानियों से अभिप्राय वह अह्ले किताब हैं जिन्हें आकाशीय पुस्तकों का ज्ञान हो।
﴾ 44 ﴿ प्रत्यक्ष (खुले) प्रमाणों तथा पुस्तकों के साथ (उन्हें भेजा) और आपकी ओर ये शिक्षा (क़ुर्आन) अवतरित की, ताकि आप उसे सर्वमानव के लिए उजागर कर दें, जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है, ताकि वे सोच-विचार करें।
﴾ 45 ﴿ तो क्या वे निर्भय हो गये हैं, जिन्होंने बुरे षड्यंत्र रचे हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धंसा दे? अथवा उनपर यातना ऐसी दिशा से आ जाये, जिसे वे सोचते भी न हों?
﴾ 46 ﴿ या उन्हें चलते-फिरते पकड़ ले, तो वे (अल्लाह को) विवश करने वाले नहीं हैं।
﴾ 47 ﴿ अथवा उन्हें भय की दशा में पकड़[1] ले? निश्चय तुम्हारा पालनहार अति करुणामय दयावान् है।
1. अर्थात जब कि पहले से उन्हें आपदा का भय हो।
﴾ 48 ﴿ क्या अल्लाह की उत्पन्न की हुई किसी चीज़ को उन्होंने नहीं देखा? जिसकी छाया दायें तथा बायें झुकती है, अल्लाह को सज्दा करते हुए? और वे सर्व विनयशील हैं।
﴾ 49 ﴿ तथा अल्लाह ही को सज्दा करते हैं, जो आकाशों में तथा धरती में चर (जीव) तथा फ़रिश्ते हैं और वे अहंकार नहीं करते।
﴾ 50 ﴿ वे[1] अपने पालनहार से डरते हैं, जो उनके ऊपर है और वही करते हैं, जो आदेश दिये जाते हैं।
1. अर्थात फ़रिश्ते।
1. इन से अभिप्रेत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वह अनुयायी हैं, जिन को मक्का के मुश्रिकों ने अत्याचार कर के निकाल दिया। और ह़ब्शा और फिर मदीना हिजरत कर गये।
﴾ 42 ﴿ जिन लोगों ने धैर्य धारण किया तथा अपने पालनहार पर ही वे भरोसा करते हैं।
﴾ 43 ﴿ और (हे नबी!) हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजे, वे सभी मानव-पुरुष थे। जिनकी ओर हम वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे। तो तुम ज्ञानियों से पूछ लो, यदि (स्वयं) नहीं[1] जानते।
1. मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यदि अल्लाह को कोई रसूल भेजना होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता। उसी पर यह आयत उतरी। ज्ञानियों से अभिप्राय वह अह्ले किताब हैं जिन्हें आकाशीय पुस्तकों का ज्ञान हो।
﴾ 44 ﴿ प्रत्यक्ष (खुले) प्रमाणों तथा पुस्तकों के साथ (उन्हें भेजा) और आपकी ओर ये शिक्षा (क़ुर्आन) अवतरित की, ताकि आप उसे सर्वमानव के लिए उजागर कर दें, जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है, ताकि वे सोच-विचार करें।
﴾ 45 ﴿ तो क्या वे निर्भय हो गये हैं, जिन्होंने बुरे षड्यंत्र रचे हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धंसा दे? अथवा उनपर यातना ऐसी दिशा से आ जाये, जिसे वे सोचते भी न हों?
﴾ 46 ﴿ या उन्हें चलते-फिरते पकड़ ले, तो वे (अल्लाह को) विवश करने वाले नहीं हैं।
﴾ 47 ﴿ अथवा उन्हें भय की दशा में पकड़[1] ले? निश्चय तुम्हारा पालनहार अति करुणामय दयावान् है।
1. अर्थात जब कि पहले से उन्हें आपदा का भय हो।
﴾ 48 ﴿ क्या अल्लाह की उत्पन्न की हुई किसी चीज़ को उन्होंने नहीं देखा? जिसकी छाया दायें तथा बायें झुकती है, अल्लाह को सज्दा करते हुए? और वे सर्व विनयशील हैं।
﴾ 49 ﴿ तथा अल्लाह ही को सज्दा करते हैं, जो आकाशों में तथा धरती में चर (जीव) तथा फ़रिश्ते हैं और वे अहंकार नहीं करते।
﴾ 50 ﴿ वे[1] अपने पालनहार से डरते हैं, जो उनके ऊपर है और वही करते हैं, जो आदेश दिये जाते हैं।
1. अर्थात फ़रिश्ते।
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