﴾ 81 ﴿ और उन्हें हमने अपनी आयतें (निशानियाँ) दीं, तो वे उनसे विमुख ही रहे।
﴾ 82 ﴿ वे शिलाकारी करके पर्वतों से घर बनाते और निर्भय होकर रहते थे।
﴾ 83 ﴿ अन्ततः, उन्हें कड़ी ध्वनि ने भोर के समय पकड़ लिया।
﴾ 84 ﴿ और उनकी कमाई उनके कुछ काम न आयी।
﴾ 85 ﴿ और हमने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है, सत्य के आधार पर ही उत्पन्न किया है और निश्चय प्रलय आनी है। अतः (हे नबी!) आप (उन्हें) भले तौर पर क्षमा कर दें।
﴾ 86 ﴿ वास्तव में, आपका पालनहार ही सबका स्रेष्टा, सर्वज्ञ है।
﴾ 87 ﴿ तथा (हे नबी!) हमने आपको सात ऐसी आयतें, जो बार-बार दुहराई जाती हैं और महा क़ुर्आन[1] प्रदान किया है।
1. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि उम्मुल क़ुर्आन (सूरह फ़ातिह़ा) ही वह सात आयतें हैं जो दुहराई जाती हैं, तथा महाक़ुर्आन हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः4704) एक दूसरी ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “अल्ह़म्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन” ही वह सात आयतें हैं जो बाब-बार दुहराई जाती हैं, और महा क़ुर्आन हैं, जो मुझे प्रदान किया गया है। (संक्षिप अऩुवाद, सह़ीह़ बुख़ारीः4702) यही कारण है कि इस के पढ़े बिना नमाज़ नहीं होती। ( सह़ीह़ बुख़ारीः756, मुस्लिमः 394)
﴾ 88 ﴿ और आप, उसकी ओर न देखें, जो सांसारिक लाभ का संसाधन हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दे रखा है और न उनपर शोक करें और ईमान वालों के लिए सुशील रहें।
﴾ 89 ﴿ और कह दें कि मैं प्रत्यक्ष (खुली) चेतावनी[1] देने वाला हूँ।
1. अर्थात अवैज्ञा पर यातना की।
﴾ 90 ﴿ जैसे हमने खण्डन कारियों[1] पर (यातना) उतारी।
1. खण्डन कारियों से अभिप्राय यहूद और ईसाई हैं। जिन्हों ने अपनी पुस्तकों तौरात तथा इंजील को खण्ड खण्ड कर दिया। अर्थात उन के कुछ भाग पर ईमान लाये और कुछ को नकार दिया। (सह़ीह़ बुख़ारीः4705-4706)
﴾ 91 ﴿ जिन्होंने क़ुर्आन को खण्ड-खण्ड कर दिया[1]।
1. इसी प्रकार इन्हों ने भी क़ुर्आन के कुछ भाग को मान लिया और कुछ का अगलों की कहानियाँ बता कर इन्कार कर दिया। तो ऐसे सभी लोगों से प्रलय के दिन पूछ होगी कि मेरी पुस्तकों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया?
﴾ 92 ﴿ तो शपथ है आपके पालनहार की। हम उनसे अवश्य पूछेंगे।
﴾ 93 ﴿ तुम क्या करते रहे?
﴾ 94 ﴿ अतः आपको, जो आदेश दिया जा रहा है, उसे खोलकर सुना दें और मुश्रिकों (मिश्रमवादियों) की चिन्ता न करें।
﴾ 95 ﴿ हम आपके लिए परिहास करने वालों को काफ़ी हैं।
﴾ 96 ﴿ जो अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य बना लेते हैं, तो उन्हें शीघ्र ज्ञान हो जायेगा।
﴾ 97 ﴿ और हम जानते हैं कि उनकी बातों से आपका दिल संकुचित हो रहा है।
﴾ 98 ﴿ अतः आप अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करें तथा सज्दा करने वालों में रहें।
﴾ 99 ﴿ और अपने पालनहार की इबादत (वंदना) करते रहें, यहाँ तक कि आपके पास विश्वास आ जाये[1]।
1. अर्थात मरण का समय जिस का विश्वास सभी को है। (क़ुर्तुबी)
﴾ 82 ﴿ वे शिलाकारी करके पर्वतों से घर बनाते और निर्भय होकर रहते थे।
﴾ 83 ﴿ अन्ततः, उन्हें कड़ी ध्वनि ने भोर के समय पकड़ लिया।
﴾ 84 ﴿ और उनकी कमाई उनके कुछ काम न आयी।
﴾ 85 ﴿ और हमने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है, सत्य के आधार पर ही उत्पन्न किया है और निश्चय प्रलय आनी है। अतः (हे नबी!) आप (उन्हें) भले तौर पर क्षमा कर दें।
﴾ 86 ﴿ वास्तव में, आपका पालनहार ही सबका स्रेष्टा, सर्वज्ञ है।
﴾ 87 ﴿ तथा (हे नबी!) हमने आपको सात ऐसी आयतें, जो बार-बार दुहराई जाती हैं और महा क़ुर्आन[1] प्रदान किया है।
1. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि उम्मुल क़ुर्आन (सूरह फ़ातिह़ा) ही वह सात आयतें हैं जो दुहराई जाती हैं, तथा महाक़ुर्आन हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः4704) एक दूसरी ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “अल्ह़म्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन” ही वह सात आयतें हैं जो बाब-बार दुहराई जाती हैं, और महा क़ुर्आन हैं, जो मुझे प्रदान किया गया है। (संक्षिप अऩुवाद, सह़ीह़ बुख़ारीः4702) यही कारण है कि इस के पढ़े बिना नमाज़ नहीं होती। ( सह़ीह़ बुख़ारीः756, मुस्लिमः 394)
﴾ 88 ﴿ और आप, उसकी ओर न देखें, जो सांसारिक लाभ का संसाधन हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दे रखा है और न उनपर शोक करें और ईमान वालों के लिए सुशील रहें।
﴾ 89 ﴿ और कह दें कि मैं प्रत्यक्ष (खुली) चेतावनी[1] देने वाला हूँ।
1. अर्थात अवैज्ञा पर यातना की।
﴾ 90 ﴿ जैसे हमने खण्डन कारियों[1] पर (यातना) उतारी।
1. खण्डन कारियों से अभिप्राय यहूद और ईसाई हैं। जिन्हों ने अपनी पुस्तकों तौरात तथा इंजील को खण्ड खण्ड कर दिया। अर्थात उन के कुछ भाग पर ईमान लाये और कुछ को नकार दिया। (सह़ीह़ बुख़ारीः4705-4706)
﴾ 91 ﴿ जिन्होंने क़ुर्आन को खण्ड-खण्ड कर दिया[1]।
1. इसी प्रकार इन्हों ने भी क़ुर्आन के कुछ भाग को मान लिया और कुछ का अगलों की कहानियाँ बता कर इन्कार कर दिया। तो ऐसे सभी लोगों से प्रलय के दिन पूछ होगी कि मेरी पुस्तकों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया?
﴾ 92 ﴿ तो शपथ है आपके पालनहार की। हम उनसे अवश्य पूछेंगे।
﴾ 93 ﴿ तुम क्या करते रहे?
﴾ 94 ﴿ अतः आपको, जो आदेश दिया जा रहा है, उसे खोलकर सुना दें और मुश्रिकों (मिश्रमवादियों) की चिन्ता न करें।
﴾ 95 ﴿ हम आपके लिए परिहास करने वालों को काफ़ी हैं।
﴾ 96 ﴿ जो अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य बना लेते हैं, तो उन्हें शीघ्र ज्ञान हो जायेगा।
﴾ 97 ﴿ और हम जानते हैं कि उनकी बातों से आपका दिल संकुचित हो रहा है।
﴾ 98 ﴿ अतः आप अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करें तथा सज्दा करने वालों में रहें।
﴾ 99 ﴿ और अपने पालनहार की इबादत (वंदना) करते रहें, यहाँ तक कि आपके पास विश्वास आ जाये[1]।
1. अर्थात मरण का समय जिस का विश्वास सभी को है। (क़ुर्तुबी)
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