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28 मई 2020

हे मेरे पालनहार! तूने मुझे राज प्रदान किया तथा मुझे स्वप्नों का अर्थ सिखाया

101 ﴿ हे मेरे पालनहार! तूने मुझे राज प्रदान किया तथा मुझे स्वप्नों का अर्थ सिखाया। हे आकाशों तथा धरती के उत्पत्तिकार! तू लोक तथा परलोक में मेरा रक्षक है। तू मेरा अन्त इस्लाम पर कर और मुझे सदाचारियों में मिला दे।
102 ﴿ (हे नबी!) ये (कथा) परोक्ष के समाचारों में से है, जिसकी वह़्यी हम आपकी ओर कर रहे हैं। और आप उन (भाईयों) के पास नहीं थे, जब वे आपस की सहमति से षड्यंत्र रचते रहे।
103 ﴿ और अधिकांश लोग आप कितनी ही लालसा करें, ईमान लाने वाले नहीं हैं।
104 ﴿ और आप इस (धर्मप्रचार) पर उनसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगते। ये (क़ुर्आन) तो विश्ववासियों के लिए (केवल) एक शिक्षा है।
105 ﴿ तथा आकाशों और धरती में बहुत सी निशानियाँ (लक्षण[1]) हैं, जिनपर से लोग गुज़रते रहते हैं और उनपर ध्यान नहीं देते[2]
1. अर्थात सहस्त्रों वर्ष की यह कथा इस विवरण के साथ वह़्यी द्वारा ही संभव है, जो आप के अल्लाह के नबी होने तथा क़ुर्आन के अल्लाह की वाणी होने का स्पष्ट प्रमाण है। 2. अर्थात विश्व की प्रत्येक चीज़ अल्लाह के अस्तित्व और उस की शक्ति और सदगुणों की परिचायक है, मात्र सोच विचार की आवश्यक्ता है।
106 ﴿ और उनमें से अधिक्तर अल्लाह को मानते तो हैं, परन्तु (साथ ही) मुश्रिक (मिश्रणवादी)[1] भी हैं।
1. अर्थात अल्लाह के अस्तित्व और गुणों का विश्वास रखते हैं, फिर भी पूजा-अर्चना अन्य की करते हैं।
107 ﴿ तो क्या वे निर्भय हो गये हैं कि उनपर अल्लाह की यातना छा जाये अथवा उनपर प्रलय अकस्मात आ जाये और वे अचेत रह जायेँ?
108 ﴿ (हे नबी!) आप कह दें: यही मेरी डगर है, मैं अल्लाह की ओर बुला रहा हूँ। मैं पूरे विश्वास और सत्य पर हूँ और जिसने मेरा अनुसरण किया (वे भी) तथा अल्लाह पवित्र है और मैं मुश्रिकों (मिश्रणवादियों) में से नहीं हूँ।
109 ﴿ और हमने आपसे पहले मानव[1] पुरुषों ही को नबी बनाकर भेजा, जिनकी ओर प्रकाशना भेजते रहे, नगर वासियों में से, क्या वे धरती में चले फिरे नहीं, ताकि देखते कि उनका परिणाम क्या हुआ, जो इनसे पहले थे? और निश्चय आख़िरत (परलोक) का घर (स्वर्ग) उनके लिए उत्तम है, जो अल्लाह से डरे, तो क्या तुम समझते नहीं हो?
1. क़ुर्आन की अनेक आयतों में आप को यह बात मिलेगी कि रसूलों का अस्वीकार उन की जातियों ने दो ही कारणों से कियाः एक तो यह कि उन के एकेश्वरवाद की शिक्षा उन के बाप दादा के परम्परा के विरुध्द थी, इस लिये सत्य को जानते हुये भी उन्हों ने उस का विरोध किया। दूसरा यह कि उन के दिल में यह बात नहीं उतरी कि कोई मानव पुरुष अल्लाह का रसूल कैसे हो सकता है? रसूल तो किसी फ़रिश्ते को होना चाहनये। फिर यदि रसूलों को किसी जाति ने स्वीकार भी किया तो कुछ युगों के पश्चात उन्हें ईश्वर अथवा ईश्वर का पुत्र बना कर एकेश्वरवाद को आघात पहुँचाया और शिर्क (मिश्रणवाद) का द्वार खोल दिया। इसी लिये क़ुर्आन ने इन दोनों कुविचारों का बार बार खण्डन किया है।
110 ﴿ (इससे पहले भी रसूलों के साथ यही हुआ।) यहाँ तक कि जब रसूल निराश हो गये और लोगों को विश्वास हो गया कि उनसे झूठ बोला गया है, तो उनके लिए हमारी सहायता आ गई, फिर हम जिसे चाहते हैं, बचा लेते हैं और हमारी यातना अपराधियों से फेरी नहीं जाती।
111 ﴿ इन कथाओं में, बुध्दिमानों के लिए बड़ी शिक्षा है, ये (क़ुर्आन) ऐसी बातों का संग्रह नहीं है, जिसे स्वयं बना लिया जाता हो, परन्तु इससे पहले की पुस्तकों की सिध्दि और प्रत्येक वस्तु का विवरण (ब्योरा) है तथा मार्गदर्शन और दया है, उन लोगों के लिए जो ईमान (विश्वास) रखते हों।

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