आपका-अख्तर खान

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14 अप्रैल 2020

उसे हम केवल एक निर्धारित अवधि के लिए देर कर रहे हैं

101 ﴿ और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु उन्होंने स्वयं अपने ऊपर अत्याचार किया। तो उनके वे पूज्य, जिन्हें व अल्लाह के सिवा पुकार रहे थे, उनके कुछ काम नहीं आये, जब आपके पालनहार का आदेश आ गया और उन्होंने उन्हें हानि पहुँचाने के सिवा और कुछ नहीं किया[1]
1. अर्थात यह जातियाँ अपने देवी-देवता की पूजा इस लिये करती थीं कि वह उन्हें लाभ पहुँचायेंगे। किन्तु उन की पूजा ही उन पर अधिक यातना का कारण बन गई।
102 ﴿ और इसी प्रकार, तेरे पालनहार की पकड़ होती है, जब वह किसी अत्याचार करने वालों की बस्ती को पकड़ता है। निश्चय उसकी पकड़ दुःखदायी और कड़ी होती[1] है।
1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि अल्लाह अत्याचारी को अवसर देता है, यहाँ तक कि जब उसे पकड़ता है तो उस से बचता नहीं, और आप ने फिर यही आयत पढ़ी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः4686)
103 ﴿ निश्चय इसमें एक निशानी है, उसके लिए जो परलोक की यातना से डरे। वह ऐसा दिन होगा, जिसके लिए सभी लोग एकत्र होंगे तथा उस दिन सब उपस्थित होंगे।
104 ﴿ और उसे हम केवल एक निर्धारित अवधि के लिए देर कर रहे हैं।
105 ﴿ जब वह दिन आ जायेगा, तो अल्लाह की अनुमति बिना कोई प्राणी बात नहीं करेगा, फिर उनमें से कुछ अभागे होंगे और कुछ भाग्यवान होंगे।
106 ﴿ फिर जो भाग्यहीन होंगे, वही नरक में होंगे, उन्हीं की उसमें चीख और पुकार होगी।
107 ﴿ वे उसमें सदावासी होंगे, जब तक आकाश तथा धरती अवस्थित हैं। परन्तु ये कि आपका पालनहार कुछ और चाहे। वास्तव में, आपका पालनहार जो चाहे, करने वाला है।
108 ﴿ और जो भाग्यवान हैं, वे स्वर्ग ही में सदैव रहेंगे, जब तक आकाश तथा धरती स्थित हैं। परन्तु आपका पालनहर कुछ और चाहे, ये प्रदान है अनवरत (निरन्तर)
109 ﴿ अतः (हे नबी!) आप उसके बारे में किसी संदेह में न हों, जिसे वे पूजते हैं। वे उसी प्रकार पूजते हैं, जैसे इससे पहले इनके बाप-दादा पूजते[1] रहे हैं। वस्तुतः, हम उन्हें उनका बिना किसी कमी के पूरा भाग देने वाले हैं।
1. अर्थात इन की पूजा निर्मूल और बाप दादा की परम्परा पर आधारित है, जिस का सत्य से कोई संबंध नहीं है।
110 ﴿ और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें विभेद किया गया और यदि आपके पालनहार ने पहले से एक बात[1] निश्चित न की होती, तो उनके बीच निर्णय कर दिया गया होता और वास्तव में, वे[2] उसके बारे में संदेह और शंका में हैं।
1. अर्थात यह कि संसार में प्रत्येक को अपनी इच्छानुसार कर्म करने का अवसर दिया जायेगा। 2. अर्थात मिश्रणवादी क़ुर्आन के विषय में।

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