﴾ 81 ﴿ फ़रिश्तों ने कहाः हे लूत! हम तेरे पालनहार के भेजे हुए (फ़रिश्ते)
हैं। वे कदापि तुझतक नहीं पहुँच सकेंगे। जब कुछ रात रह जाये, तो अपने
परिवार के साथ निकल जा और तुममें से कोई फिरकर न देखे। परन्तु तेरी पत्नी (साथ नहीं जायेगी)। उसपर भी वही बीतने वाला है, जो उनपर बीतेगा। उनकी यातना का निर्धारित समय प्रातः काल है। क्या प्रातः काल समीप नहीं है?
﴾ 82 ﴿ फिर जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने उस बस्ती को तहस-नहस कर दिया और उनपर पकी हुई कंकरियों की बारिश कर दी।
﴾ 83 ﴿ जो तेरे पालनहार के यहाँ चिन्ह लगायी हुयी थी और वह[1] (बस्ती) अत्याचारियों[2] से कोई दूर नहीं है।
1. अर्थात सदूम, जो समूद की बस्ती थी। 2. अर्थात आज भी जो उन की नीति पर चल रहे हैं उन पर ऐसी ही यातना आ सकती है।
﴾ 84 ﴿ और मद्यन की ओर उनके भाई शोऐब को भेजा। उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत (वंदना) करो। उसके सिवा कोई तुम्हारा पूज्य नहीं है और नाप-तोल में कमी न करो[1]। मैं तुम्हें सम्पन्न देख रहा हूँ। इसलिए मुझे डर है कि तुम्हें कहीं यातना न घेर ले।
1. शोऐब की जाति में शिर्क (मिश्रणवाद) के सिवा नाप तौल में कमी करने का रोग भी था।
﴾ 85 ﴿ हे मेरी जाति के लोगो! नाप-तोल न्यायपुर्वक पूरा करो और लोगों को उनकी चीज़ कम न दो तथा धरती में उपद्रव फैलाते न फिरो।
﴾ 86 ﴿ अल्लाह की दी हुई बचत, तुम्हारे लिए अच्छी है, यदि तुम ईमान वाले हो और मैं तुमपर कोई रक्षक नहीं हूँ।
﴾ 87 ﴿ उन्होंने कहाः हे शोऐब! क्या तेरी नमाज़ (इबादत) तुझे आदेश दे रही है कि हम उसे त्याग दें, जिसकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे? अथवा अपने धनों में जो चाहें करें? वास्तव में, तू बड़ा ही सहनशील तथा भला व्यक्ति है!
﴾ 88 ﴿ शोऐब ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! तुम बताओ, यदि मैं अपने पालनहार की ओर से प्रत्यक्ष प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अच्छी जीविका प्रदान की हो, (तो कैसे तुम्हारा साथ दूँ?) मैं नहीं चाहता कि उसके विरुध्द करूँ, जिससे तुम्हें रोक रहा हूँ। मैं जहाँ तक हो सके, सुधार ही चाहता हूँ और ये जो कुछ करना चाहता हूँ, अल्लाह के योगदान पर निर्भर करता है। मैंने उसीपर भरोसा किया है और उसी की ओर ध्यानमग्न रहता हूँ।
﴾ 89 ﴿ हे मेरी जाति के लोगो! तुम्हें मेरा विरोध इस बात पर न उभार दे कि तुमपर वही यातना आ पड़े, जो नूह़ की जाति, हूद की जाति अथवा सालेह़ की जाति पर आई और लूत की जाति तुमसे कुछ दूर नहीं है।
﴾ 90 ﴿ और अपने पालनहार से क्षमा माँगो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वास्तव में, मेरा पालनहार अति क्षमाशील तथा प्रेम करने वाला है।
﴾ 82 ﴿ फिर जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने उस बस्ती को तहस-नहस कर दिया और उनपर पकी हुई कंकरियों की बारिश कर दी।
﴾ 83 ﴿ जो तेरे पालनहार के यहाँ चिन्ह लगायी हुयी थी और वह[1] (बस्ती) अत्याचारियों[2] से कोई दूर नहीं है।
1. अर्थात सदूम, जो समूद की बस्ती थी। 2. अर्थात आज भी जो उन की नीति पर चल रहे हैं उन पर ऐसी ही यातना आ सकती है।
﴾ 84 ﴿ और मद्यन की ओर उनके भाई शोऐब को भेजा। उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत (वंदना) करो। उसके सिवा कोई तुम्हारा पूज्य नहीं है और नाप-तोल में कमी न करो[1]। मैं तुम्हें सम्पन्न देख रहा हूँ। इसलिए मुझे डर है कि तुम्हें कहीं यातना न घेर ले।
1. शोऐब की जाति में शिर्क (मिश्रणवाद) के सिवा नाप तौल में कमी करने का रोग भी था।
﴾ 85 ﴿ हे मेरी जाति के लोगो! नाप-तोल न्यायपुर्वक पूरा करो और लोगों को उनकी चीज़ कम न दो तथा धरती में उपद्रव फैलाते न फिरो।
﴾ 86 ﴿ अल्लाह की दी हुई बचत, तुम्हारे लिए अच्छी है, यदि तुम ईमान वाले हो और मैं तुमपर कोई रक्षक नहीं हूँ।
﴾ 87 ﴿ उन्होंने कहाः हे शोऐब! क्या तेरी नमाज़ (इबादत) तुझे आदेश दे रही है कि हम उसे त्याग दें, जिसकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे? अथवा अपने धनों में जो चाहें करें? वास्तव में, तू बड़ा ही सहनशील तथा भला व्यक्ति है!
﴾ 88 ﴿ शोऐब ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! तुम बताओ, यदि मैं अपने पालनहार की ओर से प्रत्यक्ष प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अच्छी जीविका प्रदान की हो, (तो कैसे तुम्हारा साथ दूँ?) मैं नहीं चाहता कि उसके विरुध्द करूँ, जिससे तुम्हें रोक रहा हूँ। मैं जहाँ तक हो सके, सुधार ही चाहता हूँ और ये जो कुछ करना चाहता हूँ, अल्लाह के योगदान पर निर्भर करता है। मैंने उसीपर भरोसा किया है और उसी की ओर ध्यानमग्न रहता हूँ।
﴾ 89 ﴿ हे मेरी जाति के लोगो! तुम्हें मेरा विरोध इस बात पर न उभार दे कि तुमपर वही यातना आ पड़े, जो नूह़ की जाति, हूद की जाति अथवा सालेह़ की जाति पर आई और लूत की जाति तुमसे कुछ दूर नहीं है।
﴾ 90 ﴿ और अपने पालनहार से क्षमा माँगो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वास्तव में, मेरा पालनहार अति क्षमाशील तथा प्रेम करने वाला है।
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