तुम्हारे इश्क़ की
महरबानी से
में हैरान तो था ,
मुझ में खूबी
कुछ भी न थी
फिर भी
मेरा क़ातिल मुझ पे
महरबान तो था ,
तुम्हारी बेवफाई का सच
में समझा भी तो
ऐ क़ातिल
मेरे क़त्ल के बाद ,,
तुझ क़ातिल के हाथ मे
खून से सनी शमशीर
खून से सनी मेरी लाश
फिर भी गुनाह का इल्ज़ाम
मेरे सर पर तो था ,अख्तर
महरबानी से
में हैरान तो था ,
मुझ में खूबी
कुछ भी न थी
फिर भी
मेरा क़ातिल मुझ पे
महरबान तो था ,
तुम्हारी बेवफाई का सच
में समझा भी तो
ऐ क़ातिल
मेरे क़त्ल के बाद ,,
तुझ क़ातिल के हाथ मे
खून से सनी शमशीर
खून से सनी मेरी लाश
फिर भी गुनाह का इल्ज़ाम
मेरे सर पर तो था ,अख्तर

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)