आपका-अख्तर खान

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23 अप्रैल 2020

और चाहूँ भी तो क्या।

अरूणलता माथुर
खैरथ़ल ( कोटा )
तुम्हारे लिए हँसती हूँ,
तुम्हारे लिए रोती हूँ।
तुम्हें सुन‘ने को तड़पती हूँ,
तुम्हारी याद में जलती हूँ।
तुम‘ही को पढ़ती हूँ,
तुम‘ही को लिखती हूँ।
लम्हों में तुम‘ही को जीती हूँ,
हर साँस में तुझ‘पे मरती हूँ।
तू ही बता, इस‘से ज़्यादा तुझे
और चाहूँ भी तो क्या।

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