अब क्या बताये टूटे हैं कितने कहाँ  से  हम.!!
खुद को समेटते हैं यहां से वहा से हम
नजाने किस जहाँ मे मिलेगा हमें सुकून
नाराज़ हैं ज़मी से खफा हैं आसमाँ से हम
आईने से उलझता हैं जब भी हमारा अक्स
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम
मिलते नहीं हैं अपनी कहानी मे हम कही
गायब हुये हैं जब से तेरी दास्ताँ से हम
खुद को समेटते हैं यहां से वहा से हम
नजाने किस जहाँ मे मिलेगा हमें सुकून
नाराज़ हैं ज़मी से खफा हैं आसमाँ से हम
आईने से उलझता हैं जब भी हमारा अक्स
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम
मिलते नहीं हैं अपनी कहानी मे हम कही
गायब हुये हैं जब से तेरी दास्ताँ से हम

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)