﴾ 81
﴿ और जब उन्होंने फेंक दिया, तो मूसा नो कहाः तुम जो कुछ लाये हो, वह जादू
है। निश्चय अल्लाह उसे अभिव्यर्थ कर देगा। वास्तव में, अल्लाह
उपद्रवकारियों के कर्म को नहीं सुधारता।
﴾ 82 ﴿ और अल्लाह सत्य को, अपने आदेशों के अनुसार, सत्य कर दिखायेगा। यद्यपि अपराधियों को बुरा लगे।
﴾ 83 ﴿ तो मूसा पर, उसकी जाति के कुछ नवयुवकों के सिवा, कोई ईमान नहीं लाया, फ़िरऔन और अपने प्रमुखों के भय से कि उन्हें किसी यातना में न डाल दें। वास्तव में, फ़िर्औन का धरती में बड़ा प्रभुत्व था और वह वस्तुतः उल्लंघनकारियों में था।
﴾ 84 ﴿ और मूसा ने (अपनी जाति, बनी इस्राईल से) कहाः हे मेरी जाति! जब तुम अल्लाह पर ईमान लाये हो, तो उसीपर निर्भर रहो, यदि तुम आज्ञाकारी हो।
﴾ 85 ﴿ तो उन्होंने कहाः हमने अल्लाह ही पर भरोसा किया है। हे हमारे पालनहार! हमें अत्याचारियों के लिए परीक्षा का साधन न बना।
﴾ 86 ﴿ और अपनी दया से हमें काफ़िरों से बचा ले।
﴾ 87 ﴿ और हमने मूसा तथा उसके भाई (हारून) की ओर प्रकाशना भेजी कि अपनी जाति के लिए मिस्र में कुछ घर बनाओ और अपने घरों को क़िब्ला[1] बना लो तथा नमाज़ की स्थापना करो और ईमान वालों को शुभ सूचना दो।
1. “क़िब्ला” उस दिशा को कहा जाता है जिस की ओर मुख कर के नमाज़ पढ़ी जाती है।
﴾ 88 ﴿ और मूसा ने प्रार्थना कीः हे मेरे पारलनहार! तूने फ़िरऔन और उसके प्रमुखों को सांसारिक जीवन में शोभा तथा धन-धान्य प्रदान किया है। तो मेरे पालनहार! क्या इसलिए कि वे तेरी राह से विचलित करते रहें? हे मेरे पालनहार! उनके धनों को निरस्त कर दे और उनके दिल कड़े कर दे कि वे ईमान न लायें, जब तक दुःखदायी यातना न देख लें।
﴾ 89 ﴿ अल्लाह ने कहाः तुम दोनों की प्रार्थना स्वीकार कर ली गयी। तो तुम दोनों अडिग रहो और उनकी राह का अनुसरण न करो, जो ज्ञान नहीं रखते।
﴾ 90 ﴿ और हमने बनी इस्राईल को सागर पार करा दिया, तो फ़िरऔन और उसकी सेना ने उनका पीछा किया, अत्याचार तथा शत्रुता के ध्येय से। यहाँ तक कि जब वह जलमगन होने लगा, तो बोलाः मैं ईमान ले आया और मान लिया कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है, जिसपर बनी इस्राईल ईमान लाये हैं और मैं आज्ञाकारियों में हूँ।
﴾ 82 ﴿ और अल्लाह सत्य को, अपने आदेशों के अनुसार, सत्य कर दिखायेगा। यद्यपि अपराधियों को बुरा लगे।
﴾ 83 ﴿ तो मूसा पर, उसकी जाति के कुछ नवयुवकों के सिवा, कोई ईमान नहीं लाया, फ़िरऔन और अपने प्रमुखों के भय से कि उन्हें किसी यातना में न डाल दें। वास्तव में, फ़िर्औन का धरती में बड़ा प्रभुत्व था और वह वस्तुतः उल्लंघनकारियों में था।
﴾ 84 ﴿ और मूसा ने (अपनी जाति, बनी इस्राईल से) कहाः हे मेरी जाति! जब तुम अल्लाह पर ईमान लाये हो, तो उसीपर निर्भर रहो, यदि तुम आज्ञाकारी हो।
﴾ 85 ﴿ तो उन्होंने कहाः हमने अल्लाह ही पर भरोसा किया है। हे हमारे पालनहार! हमें अत्याचारियों के लिए परीक्षा का साधन न बना।
﴾ 86 ﴿ और अपनी दया से हमें काफ़िरों से बचा ले।
﴾ 87 ﴿ और हमने मूसा तथा उसके भाई (हारून) की ओर प्रकाशना भेजी कि अपनी जाति के लिए मिस्र में कुछ घर बनाओ और अपने घरों को क़िब्ला[1] बना लो तथा नमाज़ की स्थापना करो और ईमान वालों को शुभ सूचना दो।
1. “क़िब्ला” उस दिशा को कहा जाता है जिस की ओर मुख कर के नमाज़ पढ़ी जाती है।
﴾ 88 ﴿ और मूसा ने प्रार्थना कीः हे मेरे पारलनहार! तूने फ़िरऔन और उसके प्रमुखों को सांसारिक जीवन में शोभा तथा धन-धान्य प्रदान किया है। तो मेरे पालनहार! क्या इसलिए कि वे तेरी राह से विचलित करते रहें? हे मेरे पालनहार! उनके धनों को निरस्त कर दे और उनके दिल कड़े कर दे कि वे ईमान न लायें, जब तक दुःखदायी यातना न देख लें।
﴾ 89 ﴿ अल्लाह ने कहाः तुम दोनों की प्रार्थना स्वीकार कर ली गयी। तो तुम दोनों अडिग रहो और उनकी राह का अनुसरण न करो, जो ज्ञान नहीं रखते।
﴾ 90 ﴿ और हमने बनी इस्राईल को सागर पार करा दिया, तो फ़िरऔन और उसकी सेना ने उनका पीछा किया, अत्याचार तथा शत्रुता के ध्येय से। यहाँ तक कि जब वह जलमगन होने लगा, तो बोलाः मैं ईमान ले आया और मान लिया कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है, जिसपर बनी इस्राईल ईमान लाये हैं और मैं आज्ञाकारियों में हूँ।
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