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08 अप्रैल 2020

हे मेरी जाति के लोगो! मैं तुमसे इसपर कोई बदला नहीं चाहता;

51 ﴿ हे मेरी जाति के लोगो! मैं तुमसे इसपर कोई बदला नहीं चाहता; मेरा पारिश्रमिक (बदला) उसी (अल्लाह) पर है, जिसने मुझे पैदा किया है। तो क्या तुम (इतनी) बात भी नहीं समझते[1]?
1. अर्थात यदि तुम समझ रखते तो अवश्य सोचते कि एक व्यक्ति अपने किसी संसारिक स्वार्थ के बिना क्यों हमें रातो दिन उपदेश दे रहा है और सारे दुःख झेल रहा है? उस के पास कोई ऐसी बात अवश्य होगी जिस के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रहा है।
52 ﴿ हे मेरी जाति के लोगो! अपने पालनहार से क्षमा माँगो। फिर उसकी ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वह आकाश से तुमपर धारा प्रवाह वर्षा करेगा और तुम्हारी शक्ति में अधिक शक्ति प्रदान करेगा और अपराधी होकर मुँह न फेरो।
53 ﴿ उन्होंने कहाः हे हूद! तुम हमारे पास कोई स्पष्ट (खुला) प्रमाण नहीं लाये तथा हम तुम्हारी बात के कारण अपने पूज्यों को त्यागने वाले नहीं हैं और न हम तुम्हारा विश्वास करने वाले हैं।
54 ﴿ हम तो यही कहेंगे कि तुझे हमारे किसी देवता ने बुराई के साथ पकड़ लिया है। हूद ने कहाः मैं अल्लाह को (गवाह) बनाता हूँ और तुम भी साक्षी रहो कि मैं उस शिर्क (मिश्रणवाद) से विरक्त हूँ, जो तुम कर रहे हो।
55 ﴿ उस (अल्लाह) के सिवा। तुम सब मिलकर मेरे विरुध्द षड्यंत्र रच लो, फिर मुझे कुछ भी अवसर न दो[1]
1. अर्थात तुम और तुम्हारे सब देवी-देवता मिल कर भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकते। क्यों कि मेरा भरोसा जिस अल्लाह पर है पूरा संसार उस के नियंत्रण में है, उस के आगे किसी की शक्ति नहीं कि किसी का कुछ बिगाड़ सके।
56 ﴿ वास्तव में, मैंने अल्लाह पर, जो मेरा पालनहार और तुम्हारा पालनहार है, भरोसा किया है। कोई चलने वाला जीव ऐसा नहीं, जो उसके अधिकार में न हो, वास्तव में, मेरा पालनहार सीधी राह[1] पर है।
1. अर्थात उस की राह अत्याचार की राह नहीं हो सकती कि तुम दुराचारी और कुपथ में रह कर सफल रहो और मैं सदाचारी रह कर हानि में पड़ूँ।
57 ﴿ फिर यदि तुम विमुख रह गये, तो मैंने तुम्हें वह उपदेश पहुँचा दिया है, जिसके साथ मुझे भेजा गया है और मेरा पालनहार तुम्हारा स्थान तुम्हारे सिवा किसी[1] और जाति को दे देगा और तुम उसे कुछ हानि नहीं पहुँचा सकोगे, वास्तव में, मेरा पालनहार प्रत्येक चीज़ का रक्षक है।
1. अर्थात तुम्हें ध्वस्त निरस्त कर देगा।
58 ﴿ और जब हमारा आदेश आ पहुँचा, तो हमने हूद को और उनको, जो उसके साथ ईमान लाये, अपनी दया से बचा लिया और हमने उन्हें घोर यातना से बचा लिया।
59 ﴿ वही (जाति) “आद” है, जिसने अपने पालनहार की आयतों (निशानियों) का इन्कार किया और उसके रसूलों की बात नहीं मानी और प्रत्येक सच के विरोधी के पीछे चलते रहे।
60 ﴿ और इस संसार में धिक्कार उनके साथ लगा दी गयी तथा प्रलय के दिन भी लगी रहेगी। सुनो! आद ने अपने पालनहार को अस्वीकार किया। सुनो! हूद की जाति आद के लिए दूरी हो[1]!
1. अर्थात अल्लाह की दया से दूरी। इस का प्रयोग धिक्कार और विनाश के अर्थ में होता है।

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