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10 अप्रैल 2020

फ़रिश्तों ने कहाः क्या तू अल्लाह के आदेश से आश्चर्य करती है

71 ﴿ और उस (इब्राहीम) की पत्नी खड़ी होकर सुन रही थी। वह हँस पड़ी[1], तो उसे हमने इस्ह़ाक़ (के जन्म) की शुभ सूचना[2] दी और इस्ह़ाक़ के पश्चात् याक़ुब की।
1. कि भय की कोई बात नहीं है। 2. फ़रिश्तों द्वारा।
72 ﴿ वह बोलीः हाय मेरा दुर्भाग्य! क्या मेरी संतान होगी, जबकि मैं बुढ़िया हूँ और मेरा ये पति भी बूढ़ा है? वास्तव में, ये बड़े आश्चर्य की बात है।
73 ﴿ फ़रिश्तों ने कहाः क्या तू अल्लाह के आदेश से आश्चर्य करती है? हे घर वालो! तुम सब पर अल्लाह की दया तथा सम्पन्नता है, निसंदेह वह अति प्रशंसित, श्रेष्ठ है।
74 ﴿ फिर जब इब्राहीम से भय दूर हो गया और उसे शुभ सूचना मिल गयी, तो वह लूत की जाति के बारे में हमसे आग्रह करने लगा[1]
1. अर्थात प्रार्थना करने लगा कि लूत की जाति को और संभलने का अवसर दिया जाये। हो सकता है कि वह ईमान लायें।
75 ﴿ वास्तव में, इब्राहीम बड़ा सहनशील, कोमल हृदय तथा अल्लाह की ओर ध्यानमग्न रहने वाला था।
76 ﴿ (फ़रिश्तों ने कहाः) हे इब्राहीम! इस बात को छोड़ो, वास्तव में, तेरे पालनहार का आदेश[1] आ गया है तथा उनपर ऐसी यातना आने वाली, है जो टलने वाली नहीं है।
1. आर्थात यातना का आदेश।
77 ﴿ और जब हमारे फ़रिश्ते लूत के पास आये, तो उनका आना उसे बुरा लगा और उनके कारण व्याकूल हो गया और कहाः ये तो बड़ी विपता का[1] दिन है।
1. फ़रिश्ते सुन्दर किशोरों के रूप में आये थे। और लूत अलैहिस्सलाम की जाति का आचरण यह था कि वह बालमैथुन में रूचि रखती थी। इस लिये उन्हों ने उन को पकड़ने की कोशिश की। इसी लिये इन अतिथियों के आने पर लूत अलैहिस्सलाम व्याकूल हो गये थे।
78 ﴿ और उसकी जाति के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ गये और इससे पूर्व वह कुकर्म[1] किया करते थे। लूत ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! ये मेरी[2] पुत्रियाँ हैं, वे तुम्हारे लिए अधिक पवित्र हैं, अतः अल्लाह से डरो और मेरे अतिथियों के बारे में मुझे अपमानित न करो। क्या तुममें कोई भला मनुष्य नहीं है?
1. अर्थात बालमैथुन। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी) 2. अर्थात बस्ती की स्त्रियाँ। क्यों कि जाति का नबी उन के पिता के समान होता है। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)
79 ﴿ उन लोगों ने कहाः तुमतो जानते ही हो कि हमारा तुम्हारी पुत्रियों में कोई अधिकार नहीं[1]। तथा वास्तव में, तुम जानते ही हो कि हम क्या चाहते हैं।
1. अर्थात हमें स्त्रियों में कोई रूचि नहीं है।
80 ﴿ उस (लूत) ने कहाः काश मेरे पास बल होता! या कोई दृढ़ सहारा होता, जिसकी शरण लेता!

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