﴾ 101 ﴿ (हे नबी!) ये वे नगर हैं, जिनकी कथा हम आपको सुना रहे हैं। इन सबके पास उनके रसूल खुले तर्क (प्रमाण) लाये, तो वे ऐसे न थे कि उस सत्य पर विश्वास कर लें, जिसे वे इससे पूर्व झुठला[1] चुके थे। इसी प्रकार, अल्लाह काफ़िरों के दिलों पर मुहर लगाता है।
1. अर्थात सत्य का प्रमाण आने से पहले झुठला दिया था, उस के पश्चात् भी अपनी हठधर्मी से उसी पर अड़े रहे।
﴾ 102 ﴿ और हमने उनमें अधिक्तर को वचन पर स्थित नहीं पाया[1] तथा हमने उनमें अधिक्तर को अवज्ञाकारी पाया।
1. इस से उस प्रण (वचन) की ओर संकेत है, जो अल्लाह ने सब से “आदि काल” में लिया था कि क्या मैं तुम्हारा पालनहार (पूज्य) नहीं हूँ? तो सब ने इसे स्वीकार किया था। (देखियेः सूरह आराफ, आयतः172)
﴾ 103 ﴿ फिर हमने इन रसूलों के पश्चात् मूसा को अपनी आयतों (चमत्कारों) के साथ फ़िरऔन[1] और उसके प्रमुखों के पास भेजा, तो उन्होंने भी हमारी आयतों के साथ अन्याय किया, तो देखो कि उपद्रवियों का क्या परिणाम हुआ?
1. मिस्र के शासकों की उपाधि फ़िरऔन होती थी। यह ईसा पूर्व डेढ़ हज़ार वर्ष की बात है। उन का राज्य शाम से लीबिया तथा ह़बशा तक था। फ़िरऔन अपने को सब से बड़ा पूज्य मानता था और लोग भी उस की पूजा करते थे। उस की ओर अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्सलाम) को एक अल्लाह की इबादत का संदेश दे कर भेजा कि पूज्य तो केवल अल्लाह है उस के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं।
﴾ 104 ﴿ तथा मूसा ने कहाः हे फ़िरऔन! मैं वास्तव, में विश्व के पालनहार का रसूल (संदेश वाहक) हूँ।
﴾ 105 ﴿ मेरे लिए यही योग्य है कि अल्लाह के विषय में सत्य के अतिरिक्त कोई बात न करूँ। मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से खुला प्रमाण लाया हूँ। इसलिए मेरे साथ बनी इस्राईल[1] को जाने दो।
1. बनी इस्राईल यूसुफ अलैहिस्सलाम के युग में मिस्र आये थे। तथा चार सौ वर्ष का युग बड़े आदर के साथ व्यतीत किया। फिर उन के कुकर्मों के कारण फ़िरऔन और उस की जाति ने उन को अपना दास बना लिया। जिस के कारण मूसा (अलैहिस्सलाम) ने बनी इस्राईल को मुक्त करने की माँग की। (इब्ने कसीर)
﴾ 106 ﴿ उसने कहाः यदि तुमकोई प्रमाण (चमत्कार) लाये हो, तो प्रस्तुत करो, यदि तुम सच्चे हो।
﴾ 107 ﴿ फिर मूसा ने अपनी लाठी फेंकी, तो अकस्मात् वह एक अजगर बन गई।
﴾ 108 ﴿ और अपना हाथ (जैब से) निकाला, तो वह देखने वालों के लिए चमक रहा था।
﴾ 109 ﴿ फ़िर्औन की जाति के प्रमुखों ने कहाः वास्तव में, ये बड़ा दक्ष जादूगर है।
﴾ 110 ﴿ वह तुम्हें, तुम्हारे देश से निकालना चाहता है। तो अब क्या आदेश देते हो?
1. अर्थात सत्य का प्रमाण आने से पहले झुठला दिया था, उस के पश्चात् भी अपनी हठधर्मी से उसी पर अड़े रहे।
﴾ 102 ﴿ और हमने उनमें अधिक्तर को वचन पर स्थित नहीं पाया[1] तथा हमने उनमें अधिक्तर को अवज्ञाकारी पाया।
1. इस से उस प्रण (वचन) की ओर संकेत है, जो अल्लाह ने सब से “आदि काल” में लिया था कि क्या मैं तुम्हारा पालनहार (पूज्य) नहीं हूँ? तो सब ने इसे स्वीकार किया था। (देखियेः सूरह आराफ, आयतः172)
﴾ 103 ﴿ फिर हमने इन रसूलों के पश्चात् मूसा को अपनी आयतों (चमत्कारों) के साथ फ़िरऔन[1] और उसके प्रमुखों के पास भेजा, तो उन्होंने भी हमारी आयतों के साथ अन्याय किया, तो देखो कि उपद्रवियों का क्या परिणाम हुआ?
1. मिस्र के शासकों की उपाधि फ़िरऔन होती थी। यह ईसा पूर्व डेढ़ हज़ार वर्ष की बात है। उन का राज्य शाम से लीबिया तथा ह़बशा तक था। फ़िरऔन अपने को सब से बड़ा पूज्य मानता था और लोग भी उस की पूजा करते थे। उस की ओर अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्सलाम) को एक अल्लाह की इबादत का संदेश दे कर भेजा कि पूज्य तो केवल अल्लाह है उस के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं।
﴾ 104 ﴿ तथा मूसा ने कहाः हे फ़िरऔन! मैं वास्तव, में विश्व के पालनहार का रसूल (संदेश वाहक) हूँ।
﴾ 105 ﴿ मेरे लिए यही योग्य है कि अल्लाह के विषय में सत्य के अतिरिक्त कोई बात न करूँ। मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से खुला प्रमाण लाया हूँ। इसलिए मेरे साथ बनी इस्राईल[1] को जाने दो।
1. बनी इस्राईल यूसुफ अलैहिस्सलाम के युग में मिस्र आये थे। तथा चार सौ वर्ष का युग बड़े आदर के साथ व्यतीत किया। फिर उन के कुकर्मों के कारण फ़िरऔन और उस की जाति ने उन को अपना दास बना लिया। जिस के कारण मूसा (अलैहिस्सलाम) ने बनी इस्राईल को मुक्त करने की माँग की। (इब्ने कसीर)
﴾ 106 ﴿ उसने कहाः यदि तुमकोई प्रमाण (चमत्कार) लाये हो, तो प्रस्तुत करो, यदि तुम सच्चे हो।
﴾ 107 ﴿ फिर मूसा ने अपनी लाठी फेंकी, तो अकस्मात् वह एक अजगर बन गई।
﴾ 108 ﴿ और अपना हाथ (जैब से) निकाला, तो वह देखने वालों के लिए चमक रहा था।
﴾ 109 ﴿ फ़िर्औन की जाति के प्रमुखों ने कहाः वास्तव में, ये बड़ा दक्ष जादूगर है।
﴾ 110 ﴿ वह तुम्हें, तुम्हारे देश से निकालना चाहता है। तो अब क्या आदेश देते हो?
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