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17 दिसंबर 2019

सुचना के अधिकार अधिनियम को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने अपना स्टेण्ड बदलते हुए इसे ब्लेकमेलिंग का तरीक़ा भी कह दिया

सुचना के अधिकार अधिनियम को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने अपना स्टेण्ड बदलते हुए इसे ब्लेकमेलिंग का तरीक़ा भी कह दिया है ,सुप्रीमकोर्ट ने यह टिपण्णी किन सुबूतों किन अनुभवों ,किन साक्ष्य के आधार की यह खुलासा नहीं है ,फिर भी सुप्रीमकोर्ट ने एक आदेश में तीन माह में सुचना आयुक्तों के रिक्त पद भरने के आदेश दिए है ,,, में सुप्रीमकोर्ट की टिप्पणी पर नहीं जाना चाहता , वैसे अगर सुप्रीमकोर्ट अब एक सीगा स्टिंग ऑपरेशन यानी व्यक्तिगत स्टिंग हर विभाग में करवाकर वहां के हाल जानने का अभियान चलाये तो हो सकता है कड़वा सच सामने आये ,लेकिन जिस सुप्रीमकोर्ट ने दस बार आदेश दिए उसके बाद देश का लोकायुक्त बिना प्रतिपक्षः नेता की क़ानूनी सहमति के बनाये गए ,सुचना आयुक्तों के पद रिक्त है ,राजस्थान में सुचना आयुक्त सहित सभी पद भरने के हाईकोर्ट के निर्देश है ,,,सुप्रीमकोर्ट ने एक साल पहले सुचना अधिकार अधिनियम लेकर अनुकरणीय आदेश दिया , सरकारों को दिशा निर्देश दिए ,सूचना आयुक्त मुख्य सूचना आयुक्त की योग्यता ,विधि का अनुभव ,आई टी का अनुभव ,,समाजसेवा का अनुभव ,सोशल मीडिया और पत्रकारिता लेखन का अनुभव मुख्य रूप से है ,आम तोर पर सरकार इन मामलों में नौकरशाहों को सेवानिवृत्ति के बाद ,या पूर्व में ही ,बतौर सेवा इनाम इन पोस्टों को परोसती रही है ,,राजस्थान का भी यही हाल रहा है ,लेकिन सुप्रीमकोर्ट के दिशा निर्देशों में लेंडमार्क जजमेंट में स्पष्ट हुआ है ,, के सरकार इन सुचना आयुक्त पदों पर ,नौकरशाहों ,सेवानिवृत अधिकारीयों को नियुक्त नहीं करेगी ,बात साफ ,है जब अधिकारी है तो उसे प्रशासनिक अनुभव हो सकता है ,विधिक अनुभव भी हो सकता है ,लकिन आई टी एक्ट ,सोशल मिडिया एक्टिविस्ट ,पत्रकारिता ,समाजसेवा का अनुभव वोह सरकारी अधिकारी विधिनियमों के विपरीत ऐसा काम नहीं करने से ,हरगिज़ नहीं हो सकता ऐसे में यह नियुक्तियां अवैध ही रहती है ,सिर्फ प्रसाद पर्यन्त ,वफादारों को रेवड़ियां बांटने वाली रही है ,,,इसीलिए सुप्रीमकोर्ट ने तेईस साल की वकालत का अनुभव रखने वाले व्यक्ति में पत्रकारिता ,प्रबंधन ,समाजसेवा ,आई टी ,लेखन ,सोशल मीडिया अनुभव होने पर नियुक्ति के स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये है ,राजस्थान में मुख्य सुचना आयुक्त के एक पद के लिए न जाने क्यों एक नहीं ,दो नहीं ,तीन नहीं चार बार एक एक माह के अंतराल में एक ही पद के लिए विञप्तियाँ निकाली गयी ,है ,, फिर फर्स्ट इण्डिया की अगर खबर सही माने तो इस पद पर ,एक आई ऐ एस को इनाम देकर पदस्थापित किये जाने की खबर है ,वैसे तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में अविधिक कार्य सम्भव नहीं है ,लेकिन चापलूस कुछ नौकरशाहों ने अगर ऐसा करने का प्रयास किया ,बार बार सुचना आयुक्त की बिना किसी कारण विज्ञापन निकालकर एक ही पद के लिए आवेदन मांगे तो यह संदेह के घेरे में तो है ,फिर अगर किसी अधिकारी ,सेवानिवृत अधिकारी को इस पद पर नियुक्त करने की कोई प्रक्रिया है भी तो सुप्रीमकोर्ट के दिशा निर्देशों का खुला उलंग्घन है ,ऐसी कोई भी नियुक्ति कोई दूसरे आवेदक द्वारा अगर हाईकोर्ट ,सुप्रीमकोर्ट में ,पूर्व में लेंडमार्क सुप्रीमकोर्ट के फैसले में दिए गए दिशानिर्देशों के विपरीत नौकरशाहों के झमेले में हो गयी तो ,कोई भी पात्र आवेदक इसे हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट में अगर चुनौती देगा तो ,कुछ नौकरशाहो की लालफीताशाही के चक्कर में सरकार को बेक टू पेवेलियन होने से ,,दिक़्क़तें आ सकती है ,,,वैसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हर नियुक्ति सभी पहलुओं पर विचार कर हरी झंडी देते है ,ऐसे में हो सकता है ,फस्ट इण्डिया समाचार चेनल पर इस पद पर किसी नौकरशाह ,बढे नौकर शाह को बतौर पुरस्कार देने की यह खबर गलत साबित हो और प्राइवेट तेईस साल की वकालत के अनुभव सहित अन्य योग्यताये रखें वाले को यह पद मिले ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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