﴾ 80
﴿ और जब उसकी जाति ने उससे वाद-झगड़ा किया, तो उसने कहाः क्या तुम अल्लाह
के विषय में मुझसे झगड़ रहे हो, जबकि उसने मुझे सुपथ दिखा दिया है तथा मैं
उससे नहीं डरता हूँ, जिसे तुम साझी बनाते हो। परन्तु मेरा पालनहार कुछ चाहे
(तभी वह मुझे हानि पहुँचा सकता है)। मेरा पालनहार प्रत्येक वस्तु को अपने ज्ञान में समोये हुए है। तो क्या तुम शिक्षा नहीं लेते?
﴾ 81 ﴿ और मैं उनसे कैसे डरूँ, जिन्हें तुमने उसका साझी बना लिया है, जब तुम उस चीज़ को उसका साझी बनाने से नहीं डरते, जिसका अल्लाह ने कोई तर्क (प्रमाण) नहीं उतारा है? तो दोनों पक्षों में कौन अधिक शान्त रहने का अधिकारी है, यदि तुम कुछ ज्ञान रखते हो?
﴾ 82 ﴿ जो लोग ईमान लाये और अपने ईमान को अत्याचार (शिर्क) से लिप्त नहीं[1] किया, उन्हीं के लिए शान्ति है तथा वही मार्गदर्शन पर हैं।
1. ह़दीस में है कि जब यह आयत उतरी तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों ने कहाः हम में कौन है जिस ने अत्याचार न किया हो? उस समय वह आयत उतरी, जिस का अर्थ यह है कि निश्चय शिर्क (मिश्रणवाद) ही सब से बड़ा अत्याचार है। (सह़ीह़ बुख़ारीः4629)
﴾ 83 ﴿ ये हमारा तर्क था, जो हमने इब्राहीम को उसकी जाति के विरुध्द प्रदान किया, हम जिसके पदों[1] को चाहते हैं, ऊँचा कर देते हैं। वास्तव में, आपका पालनहार गुणी तथा ज्ञानी है।
1. एक व्यक्ति नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः हे सर्वोत्तम पुरुष! आप ने कहाः वह (सर्वोत्तम पुरुष) इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) हैं। (सह़ीह़ मुस्लिमः2369)
﴾ 84 ﴿ और हमने, इब्राहीम को (पुत्र) इस्ह़ाक़ तथा (पौत्र) याक़ूब प्रदान किये। प्रत्येक को हमने मार्गदर्शन दिया और उससे पहले हमने नूह़ को मार्गदर्शन दिया और इब्राहीम की संतति में से दावूद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ, मूसा तथा हारून को। इसी प्रकार हम सदाचारियों को प्रतिफल प्रदान करते हैं।
﴾ 85 ﴿ तथा ज़करिय्या, यह़्या, ईसा और इल्यास को। ये सभी सदाचारियों में थे।
﴾ 86 ﴿ तथा इस्माईल, यस्अ, यूनुस और लूत को। प्रत्येक को हमने संसार वासियों पर प्रधानता दी है।
﴾ 87 ﴿ तथा उनके पूर्वजों, उनकी संतति तथा उनके भाईयों को। हमने इनसब को निर्वाचित कर लिया और इन्हें सुपथ दिखा दिया था।
﴾ 88 ﴿ यही अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा अपने भक्तों में से जिसे चाहे, सुपथ दर्शा देता है और यदि वे शिर्क करते, तो उनका सब किया-धरा व्यर्थ हो जाता[1]।
1. इन आयतों में अठारह नबियों की चर्चा करने के पश्चात् यह कहा गया है कि यदि यह सब भी मिश्रण करते, तो इन के सत्कर्म व्यर्थ हो जाते। जिस से अभिप्राय शिर्क (मिश्रणवाद) की गंभीरता से सावधान करना है।
﴾ 89 ﴿ (हे नबी!) ये वे लोग हैं, जिन्हें हमने पुस्तक, निर्णय शक्ति एवं नुबूवत प्रदान की। फिर यदि ये (मुश्रिक) इन बातों को नहीं मानते, तो हमने इसे, कुछ ऐसे लोगों को सौंप दिया है, जो इसका इन्कार नहीं करते।
﴾ 90 ﴿ (हे नबी!) ये वे लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने सुपथ दर्शा दिया, तो आपभी उन्हीं के मार्गदर्शन पर चलें तथा कह दें कि मैं इस (कार्य)[1] पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। ये सब संसार वासियों के लिए एक शिक्षा के सिवा कुछ नहीं है।
1. अर्थात इस्लाम का उपदेश देने पर।
﴾ 81 ﴿ और मैं उनसे कैसे डरूँ, जिन्हें तुमने उसका साझी बना लिया है, जब तुम उस चीज़ को उसका साझी बनाने से नहीं डरते, जिसका अल्लाह ने कोई तर्क (प्रमाण) नहीं उतारा है? तो दोनों पक्षों में कौन अधिक शान्त रहने का अधिकारी है, यदि तुम कुछ ज्ञान रखते हो?
﴾ 82 ﴿ जो लोग ईमान लाये और अपने ईमान को अत्याचार (शिर्क) से लिप्त नहीं[1] किया, उन्हीं के लिए शान्ति है तथा वही मार्गदर्शन पर हैं।
1. ह़दीस में है कि जब यह आयत उतरी तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों ने कहाः हम में कौन है जिस ने अत्याचार न किया हो? उस समय वह आयत उतरी, जिस का अर्थ यह है कि निश्चय शिर्क (मिश्रणवाद) ही सब से बड़ा अत्याचार है। (सह़ीह़ बुख़ारीः4629)
﴾ 83 ﴿ ये हमारा तर्क था, जो हमने इब्राहीम को उसकी जाति के विरुध्द प्रदान किया, हम जिसके पदों[1] को चाहते हैं, ऊँचा कर देते हैं। वास्तव में, आपका पालनहार गुणी तथा ज्ञानी है।
1. एक व्यक्ति नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः हे सर्वोत्तम पुरुष! आप ने कहाः वह (सर्वोत्तम पुरुष) इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) हैं। (सह़ीह़ मुस्लिमः2369)
﴾ 84 ﴿ और हमने, इब्राहीम को (पुत्र) इस्ह़ाक़ तथा (पौत्र) याक़ूब प्रदान किये। प्रत्येक को हमने मार्गदर्शन दिया और उससे पहले हमने नूह़ को मार्गदर्शन दिया और इब्राहीम की संतति में से दावूद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ, मूसा तथा हारून को। इसी प्रकार हम सदाचारियों को प्रतिफल प्रदान करते हैं।
﴾ 85 ﴿ तथा ज़करिय्या, यह़्या, ईसा और इल्यास को। ये सभी सदाचारियों में थे।
﴾ 86 ﴿ तथा इस्माईल, यस्अ, यूनुस और लूत को। प्रत्येक को हमने संसार वासियों पर प्रधानता दी है।
﴾ 87 ﴿ तथा उनके पूर्वजों, उनकी संतति तथा उनके भाईयों को। हमने इनसब को निर्वाचित कर लिया और इन्हें सुपथ दिखा दिया था।
﴾ 88 ﴿ यही अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा अपने भक्तों में से जिसे चाहे, सुपथ दर्शा देता है और यदि वे शिर्क करते, तो उनका सब किया-धरा व्यर्थ हो जाता[1]।
1. इन आयतों में अठारह नबियों की चर्चा करने के पश्चात् यह कहा गया है कि यदि यह सब भी मिश्रण करते, तो इन के सत्कर्म व्यर्थ हो जाते। जिस से अभिप्राय शिर्क (मिश्रणवाद) की गंभीरता से सावधान करना है।
﴾ 89 ﴿ (हे नबी!) ये वे लोग हैं, जिन्हें हमने पुस्तक, निर्णय शक्ति एवं नुबूवत प्रदान की। फिर यदि ये (मुश्रिक) इन बातों को नहीं मानते, तो हमने इसे, कुछ ऐसे लोगों को सौंप दिया है, जो इसका इन्कार नहीं करते।
﴾ 90 ﴿ (हे नबी!) ये वे लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने सुपथ दर्शा दिया, तो आपभी उन्हीं के मार्गदर्शन पर चलें तथा कह दें कि मैं इस (कार्य)[1] पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। ये सब संसार वासियों के लिए एक शिक्षा के सिवा कुछ नहीं है।
1. अर्थात इस्लाम का उपदेश देने पर।

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