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01 दिसंबर 2019

आप उनसे कह दें कि क्या तुम अल्लाह के सिवा उसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो

71 ﴿ तथा वे समझे कि कोई परीक्षा न होगी, इसलिए अंधे-बहरे हो गये, फिर अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया, फिर भी उनमें से अधिक्तर अंधे और बहरे हो गये तथा वे जो कुछ कर रहे हैं, अल्लाह उसे देख रहा है।
72 ﴿ निश्चय वे काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह[1] मर्यम का पुत्र मसीह़ ही है। जबकि मसीह़ ने कहा थाः हे बनी इस्राईल! उस अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, वास्तव में, जिसने अल्लाह का साझी बना लिया, उसपर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम (वर्जित) कर दिया और उसका निवास स्थान नरक है तथा अत्याचारों का कोई सहायक न होगा।
1. आयत का भावार्थ यह है कि ईसाईयों को भी मूल धर्म एकेश्वरवाद और सदाचार की शिक्षा दी गई थी। परन्तु वह भी उस से फिर गये, तथा ईसा को स्वयं अल्लाह अथवा अल्लाह का अंश बना दिया, और पिता-पुत्र और पवित्रात्मा तीनों के योग को एक प्रभु मानने लगे।
73 ﴿ निश्चय वे भी काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह तीन का तीसरा है! जबकि कोई पूज्य नहीं है, परन्तु वही अकेला पूज्य है और यदि वे जो कुछ कहते हैं, उससे नहीं रुके, तो उनमें से काफ़िरों को दुखदायी यातना होगी।
74 ﴿ वे अल्लाह से तौबा तथा क्षमा याचना क्यों नहीं करते, जबकि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है?
75 ﴿ मर्यम का पुत्र मसीह़ इसके सिवा कुछ नहीं कि वह एक रसूल है, उससे पहले भी बहुत-से रसूल हो चुके हैं, उसकी माँ सच्ची थी, दोनों भोजन करते थे, आप देखें कि हम कैसे उनके लिए निशानियाँ (एकेश्वरवाद के लक्षण) उजागर कर रहे हैं, फिर देखिए कि वे कहाँ बहके[1] जा रहे हैं?
1. आयत का भावार्थ यह है कि ईसाईयों को भी मूल धर्म एकेश्वरवाद और सदाचार की शिक्षा दी गई थी। परन्तु वह भी उस से फिर गये, तथा ईसा को स्वयं अल्लाह तथा अल्लाह का अंश बना दिया, और पिता-पुत्र और पवित्रात्मा तीनों के योग को एक प्रभु मानने लगे।
76 ﴿ आप उनसे कह दें कि क्या तुम अल्लाह के सिवा उसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो, जो तुम्हें कोई हानि और लाभ नहीं पहुँचा सकता? तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
77 ﴿ (हे नबी!) कह दो कि हे अह्ले किताब! अपने धर्म में अवैध अति न करो[1] तथा उनकी अभिलाषाओं पर न चलो, जो तुमसे पहले कुपथ हो[2] चुके और बहुतों को कुपथ कर गये और संमार्ग से विचलित हो गये।
1. “अति न करो” अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम को प्रभु अथवा प्रभु का पुत्र न बनाओ। 2. इन से अभिप्राय वह हो सकते हैं, जो नबियों को स्वयं प्रभु अथवा प्रभु का अंश मानते हैं।
78 ﴿ बनी इस्राईल में से जो काफ़िर हो गये, वे दावूद तथा मर्यम के पुत्र ईसा की ज़बान पर धिक्कार दिये[1] गये, ये इस कारण कि उन्होंने अवज्ञा की तथी (धर्म की सीमा का) उल्लंघन कर रहे थे।
1. अर्थात धर्म पुस्तक ज़बूर तथा इंजील में इन के धिक्कृत होने की सूचना दी गयी है। ( इब्ने कसीर)
79 ﴿ वे एक-दूसरे को किसी बुराई से, जो वे करते थे, रोकते नहीं थे, निश्चय वे बड़ी बुराई कर रहे थे[1]
1. इस आयत में उन पर धिक्कार का कारण बताया गया है।
80 ﴿ आप उनमें से अधिक्तर को देखेंगे कि काफ़िरों को अपना मित्र बना रहे हैं। जो कर्म उन्होंने अपने लिए आगे भेजा है, बहुत बुरा है कि अल्लाह उनपर क्रुध्द हो गया तथा यातना में वही सदावासी होंगे।

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