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03 नवंबर 2019

राष्ट्रीय विधि दिवस का उद्देश्य

यह दिवस प्रति वर्ष 26 नवम्बर को आयोजित किया जाता है. ध्यान रहे कि इसी दिन वर्ष 1949 में संबिधान सभा नें भारत के संविधान को अपनाया था.
राष्ट्रीय विधि दिवस का इतिहास
26 नवंबर 1949 के पश्चात करीब 30 वर्षों बाद भारत के उच्चतम न्यायालय के बार एसोसिएसन ने 26 नवम्बर की तिथि को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में घोषित किया था. तब से प्रति वर्ष यह दिवस पूरे भारत में राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है. विशेषकर विधिक बंधुत्व को बढ़ावा देने या इस तरह की विचारधारा को फैलाने के लिए इस दिवस का महत्व है. वस्तुतः यह दिवस संबिधान को निर्मित करने वाली संबिधान सभ के उन 207 सदस्यों के अतुलनीय योगदान को देखते हुए और उन्हें सम्मान देने के लिए आयोजित किया जाता है.
वर्ष 2013 में भारतीय राष्ट्रीय बार एसोसिएसन नें दो दिवसीय(आईएनबीए) 26 और 27 नवम्बर को भारतीय अंतर्राष्ट्रीय केंद्र नें एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक आयोजित की थी और इन दो दिवसों को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में आयोजित किया था. इस सम्मलेन में सम्माननीय न्यायधीश वर्ग, वरिष्ट सरकारी अधिकारी, फार्च्यून 500 कम्पनियों के वकीलों नें भी भाग लिया था. इसके अलावा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की विधिक कम्पनियों नें भी इस सम्मलेन में भाग लिया था. इस सम्मलेन का मूल उद्देश्य औद्योगीकरण से जुड़े विधिक वर्गों को एक आधार प्रदान करना था. इसके अलावा इस सम्मलेन में बहुत सारे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से जुड़े विधिक पहलुओं पर भी चर्चा की गयी थी.
राष्ट्रीय विधि दिवस का उद्देश्य
भारत के उच्चतम न्यायलय के बार एसोसिएसन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के अनुसार भारत का उच्चतम न्यायलय मानवाधिकारों और शांति को बनाये रखने में संबिधान का रक्षक है. यह सर्वदा समाज में हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों में अपनी सहभागिता अदा करता है. साथ ही समाज के मूल कर्तव्यों को भी आगे बढाने में सहभागी होता है, और इसके उद्देशों को गति प्रदान करता है. यह विधि के नियमों को स्थापित करने के साथ-साथ लोकतंत्र का रक्षक भी होता है और मानवाधिकारों की रक्षा भी करता है. संबिधान के अनुच्छेद 21 के तहत इस सन्दर्भ में बहुत सारी जानकारियां दी गयी हैं. साथ ही विधि के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को भी परिभाषित किया गया है.
भारत के उच्चतम न्यायलय नें धर्म-निरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा की है, साथ ही सभी धर्मों, सम्प्रदायों एवं जातियों एवं उनके समुदायों का सम्मान भी किया है. संबिधान के अंतर्गत न्यायपालिका एक स्वतंत्र निकाय है. इस सन्दर्भ में यह संबिधान प्रदत्त कानून एवं कार्यकारी अधिकारों को धारण करते हुए एक चुकसी करने वाला अधिकारी (विजिलेंस आफिसर) है. सबसे अहम् भूमिका के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायलय संविधान की रक्षा करने वाले निकाय के रूप में निभाता है. यह राज्य के तीन स्तंभों (कार्यपालिका,विधायिका और न्यायपालिका) में से एक है.

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