👌 *अर्थ बड़े गहरे हैं*
....गौर फरमायें....
*मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है ....*!!!
*उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!!*
*वो .. जो चलते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..*!!!
*उनको भी .. पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!!*
*जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..*!!!
*उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ बरसते देखा है .. !!!*
*जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से ..पत्थर भी कांप उठते थे..*!!!
*उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!!*
*जिन आवाज़ो से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..*!!!
*उन.. होठों पर भी .. मजबूर .. चुप्पियों का ताला .. लगा देखा है .. !!!
ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..*!!!
इनके .. जाते ही .. इंसान को ~~ बेजान हुआ देखा है ... !!!
अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..*!!!
*वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर होता देखा है .. !!
कर सको..तो किसी को खुश करो...दुःख देते ...हुए....तो हजारों को देखा है ।।।
....गौर फरमायें....
*मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है ....*!!!
*उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!!*
*वो .. जो चलते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..*!!!
*उनको भी .. पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!!*
*जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..*!!!
*उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ बरसते देखा है .. !!!*
*जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से ..पत्थर भी कांप उठते थे..*!!!
*उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!!*
*जिन आवाज़ो से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..*!!!
*उन.. होठों पर भी .. मजबूर .. चुप्पियों का ताला .. लगा देखा है .. !!!
ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..*!!!
इनके .. जाते ही .. इंसान को ~~ बेजान हुआ देखा है ... !!!
अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..*!!!
*वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर होता देखा है .. !!
कर सको..तो किसी को खुश करो...दुःख देते ...हुए....तो हजारों को देखा है ।।।

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