देश में भारत के संविधान को अपनाये जाने वाली तिथी ,,26 नवम्बर 1949 से
राष्ट्रिय विधिक सेवा दिवस के सफर की शुरुआत हुई ,1979 में सुप्रीमकोर्ट ने
वकीलों सहित समाजसेवी संस्थाओं को निर्धन गरीबों की मदद और विधिक साक्षरता
से जोड़ने के लिए जागरूकता कार्यक्रम के तहत इस दिवस की शुरआत की ,हालात
बदले ,क़ानून बदले ,नियम बदले फिर 1987 के बाद संशोधित 9 नवम्बर 1995 को
लीगल ऑथोरिटी क़ानून की शुरुआत हुई ,बस फिर इसी दिन को राष्ट्रिय विधिक
सप्ताह के रूप में ,न्यायिक अधिकारीयों ,वकीलों ,प्रशासनिक अधिकारीयों
द्वारा समाजसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर ,विधिक ,जागरूकता ,साक्षरता के लिए
इस दिवस को मनाया जाने लगा ,, अब 9 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष इस दिवस के
पूर्व या बाद की तिथियों को सहूलियत के हिसाब से विधिक सेवा सप्ताह के रूप
में भी मनाया जाता है ,,,विधिक सहायता का इतिहास तो लम्बा है , लेकिन विधिक
सहायता के इतने सालों बाद भी ,अरबों ,अरब रूपये खर्च होने के बावजूद भी
,,यह विधिक सहायता आज भी धरातल पर आम लोगों तक नहीं पहुंच पायी है ,गले
नहीं उतर पायी है ,, विधिक सेवा समिति का अब हर ज़िले में अपना अलग कार्यालय
है ,स्टाफ है ,अधिकारी है ,सभी सुख सुविधाएं है ,अब तो वैकल्पिक विवाद
निस्तारण के तहत और भी व्यवस्थाएं बढ़ी है ,, फिर भी आज अगर हम विधिक दिवस
पर अगर इसका आत्मचिंतन करें ,देश के वकील ,सेवानिवृत जज ,इस कार्य में लगे
कर्मचारी ,अधिकारी ,समाजसेवी संस्थाए अगर आत्मा से पूंछे तो ,क्या खोया ,
क्या पाया के नाम पर जवाब वोह क्या दे पाएंगे में नहीं जानता ,लेकिन में
देखता हूँ ,,आज भी आम लोगों को विधिक सहायता की कोई ख़ास जानकारी नहीं है
,,कहने को वार्डों में ,गलियों में ,स्कूलों में थानों में ,,समाजसेवी
संस्थाओं में ,गाँवों में ,पंचायतों में ढाडियों में विधिक साक्षरता का जाल
सरकारी कागज़ों में बना हुआ है ,,कलेक्टर ,न्यायक प्रशासन ,समाजसेवी
संस्थाए ,वकीलों का पेनल इस मामले में रिकॉर्ड के अनुसार दिन रात मेहनत
करते है ,,करोडो करोड़ रूपये की योजना बनाकर इस विधिक सहायता ,साक्षरता
कार्यक्रम को कामयाब करने के लिए दिन रात लगे रहते है ,जेल की विज़िट करते
है ,,न्यायालयों में प्रथम बार पेश होने वाले अभियुक्त की रिमांड के वक़्त
से ही वकालत करते है ,थानों में मदद के लिए जाते है ,,लेकिन हिरासत में
मौतें ,,,बिना वकील के रिमांड ,,जेलों के निरीक्षण के बाद भी क़ैदियों के
साथ दुर्व्यवहार ,,कस्टोडियल डेथ की शिकायते उन्हें जेल में दी जाने वाली
चिकित्सा सुविधा ,में लापरवाही ,मारपीट ,,भ्रष्टाचार की शिकायते जस की तस
बनी है ,,इस कार्य के लिए कितना बजट किस किस मद से आता है ,किस किस मद में
क्या ,, क्या विधिक सहायता ,साक्षरता सहित अन्य कार्य हुए ,उनका ,विवरण
,उन पर खर्च की भी समीक्षा होना चाहिए ,, पारदर्शिता के साथ वार्षिक
मूल्यांकन होना चाहिए ,हर साल इस पूरी व्यवस्था के लिए लाल्लुका ,,क़स्बा
,जिला ,राज्य और पुरे देश में अलग अलग आमदनी बजट ,स्वीकृत बजट ,फिर एक
आलपिन की खरीद से लेकर ,, ओवरटायम ,,कार्यक्रम , साक्षरता कार्यक्रमों सहित
सभी खर्चों का ब्योरा इस विधिक दिवस के दिन सार्वजनिक करना चाहिए ,,आम
जनता को वितरित किया जाना चाहिए ,, साथ ही कार्य समीक्षा के लिए ताल्लुका
,क़स्बा , जिला ,राज्य ,राष्ट्रिय स्तर पर कितने वकील , कितने स्टाफ ,कितनी
समाजसेवी संस्थाओं ,न्यायिक अधिकारीयों ने पृथक पृथक उन्हें क्या कार्य
दिए गए ,उन्होंने क्या एचीवमेंट ,विशिष्ठ एचीवमेंट कार्य किये ,,क्या काम
उन्होंने किये और क्या काम वोह नहीं कर सके ,जेलों के निरीक्षण के दौरान
बिना सुचना के आकस्मिक गए ,या पूर्व सुचना देकर जेल में फोर्मलिटी निभाने
गए ,किन क़ैदियों से बाद हुई ,क़ैदियों के अदालत परिसर में जेल प्रशासन के भय
से मुक्त होकर आने पर उनसे अलग से जेल प्रबंधन ,व्यवस्था ,उनके अधिकारों
और विधिक सहायता के बारे में क्या बात हुई ,इनके ब्योरे विवरण एक श्वेतपत्र
के रूप में कागज़ पर होना चाहिए ,देश को दिखाना होगा के विधिक ,साक्षरता
विधिक सहायता के नाम पर अरबों अरब रूपये खर्च कर ,हज़ारों लाखों के
प्रत्यक्ष ,अप्रत्यक्ष स्टाफ के बाद हमने क्या हांसिल क्या ,, यह तो बात
हुई आत्मचिंतन की ,अब कर्तव्यों का सवाल है ,,ऐडवोकेट एक्ट में मुफ्त विधिक
सहायता की प्रतिशतता का हवाला दिया गया है ,बार एसोसिएशन ,,बार कॉंसिल्स
को भी ऐसे कार्यक्रम अपने स्तर पर स्वतंत्र रूप से पृथक पृथक चलाना होंगे
,परामर्शदात्री समितियों ,विधिक सेवा सर्विस प्रोवाइडर्स ,वकीलों की पेनल
नियुक्ति ,,वकीलों का चयन ,मीडिएटर्स चयन ,कार्यक्रमों ,लोकअदालतो में
निस्तारित मामलों पर भी निगरानी रखना होगी ,,बात कड़वी ज़रूर है , लेकिन
सच्चाई यही है के अभी लगातार इस दिवस को मनाने के नाम पर देश इस मामले की
क्रियानाविति के लिए गंभीर होने के बाद भी गंभीर नहीं है ,, अभी नियमित
समीक्षा ,भूल चूक के साथ आपसी विचारविमर्श से इन कार्यक्रमों में जनसहयोग
और सुधार की बहुत ज़रूरते है ,अकेले ,न्यायिक अधिकारीगण ,,वकील समूह
,समाजसेवी संस्थाए ,या प्रशासनिक अधिकारी इस अभियान को आगे नहीं बढ़ा सकते
,,एक सो पैतीस करोड़ लोग ,जागें ,उठे ,इस विधिक दिवस में भागीदार बने
,हिस्सेदार बने ,घटनाओं पर नज़र रखे ,क़ानून के मददगार बने ,दुर्घटनाओं के
वक़्त बचाव कार्य करें ,,अपराधों के वक़्त चश्मदीद होने पर गवाह बने ,पुलिस
की मदद करे ,अपराध घटित होने पर ,हो हल्ला ,चक्का जाम ,,हिंसा करके दबाव न
बनाये ,बस जो घटना देखी है ,जो घटना हुई है ,उसे पुलिस को बताये ,अदालत
में हु बहु आकर बयान करे ,,गरीब को ,आरोपी को ,विधिक सहायता मिलना ज़रूरी है
,लेकिन ,अगर अपराध हुआ है तो सजा भी मिलना ज़रूरी है ,,किसी को अगर गलत
फंसाया है तो उसे बचाव में मदद की भी ज़रूरत है ,,यह सब एक आम नागरिक अपने
विधिक कर्तव्य निर्वहन के साथ ही कर सकता है ,अफ़सोस होता है ,सरे राह
हत्या हुई ,बलात्कार हुआ ,,आगजनी हुई ,दंगे फसादात ,मोब्लिंचिंग हुई
,,विडिओ में सब है ,लाइव् कार्यक्रम है ,और अदालत में गवाह कहता है
मेरे खाली कागज़ों पर साइन करवाए थे ,मजिस्ट्रेट के सामने 164 के बयान भी
पुलिस वालों ने ज़बरदस्ती समझाकर दिलवाये थे ,हत्या हुई है ,,अपराध हुआ है
,चालान पेश हुआ है ,लेकिन हमारी इस लापरवाही ,अपराधी से खौफ या सांठ गाँठ
के चलते ,,अपराधी बरी हो जाते है ,फिर वोह डॉन होते है,, भाई साहब होते है
,फिर विधायक ,सांसद ,फिर मंत्री हो जाते है ,ऐसे मामलों में विधिक
साक्षरता ,विधिक सहायता का महत्व और बढ़ जाता है ,और इस दिवस पर इन मामलों
की भी समीक्षा होना चाहिए ,,यह भी देखना चाहिए के सुप्रीम कोर्ट के
निर्देशों आदेशों की पालना प्रशासनिक अधिकारी ,पुलिस अधिकारी कर भी रहे है
या नहीं इन मामलों की भी समीक्षा होना चाहिए ,क़ानून बनाना ,क़ानून होना
,सुप्रीमकोर्ट के आदेश होना ,ही काफी नहीं है , इनकी शतप्रतिशत
क्रियान्विति होना ही चाहिए ,यही विधिक साक्षरता ,विधिक सेवा ,,विधिक दिवस
का मूल पैगाम होना चाहिए ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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