﴾ 241 ﴿ तथा जिन स्त्रियों को तलाक़ दी गयी हो, तो उन्हें भी उचित रूप से सामग्री मिलनी चाहिए। ये आज्ञाकारियों पर आवश्यक है।
﴾ 242 ﴿ इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को उजागर कर देता है, ताकि तुम समझो।
﴾ 243 ﴿ क्या आपने उनकी दशा पर विचार नहीं किया, जो अपने घरों से मौत के भय से निकल गये[1], जबकि उनकी संख्या हज़ारों में थी, तो अल्लाह ने उनसे कहा कि मर जाओ, फिर उन्हें जीवित कर दिया। वास्तव में, अल्लाह लोगों के लिए बड़ा उपकारी है, परन्तु अधिकांश लोग कृतज्ञता नहीं करते।[1]
1. इस में बनी इस्राईल के एक गिरोह की ओर संकेत किया गया है। 2. आयत का भावार्थ यह है कि जो लोग मौत से डरते हों, वह जीवन में सफल नहीं हो सकते, तथा जीवन और मौत अल्लाह के हाथ में है।
﴾ 244 ﴿ और तुम अल्लाह (के धर्म के समर्थन) के लिए युध्द करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है।
﴾ 245 ﴿ कौन है, जो अल्लाह को अच्छा उधार[1] देता है, ताकि अल्लाह उसे उसके लिए कई गुना अधिक कर दे? और अल्लाह ही थोड़ा और अधिक करता है और उसी की ओर तुम सब फेरे जाओगे।
1. अर्थात जिहाद के लिये धन ख़र्च करना अल्लाह को उधार देना है।
﴾ 246 ﴿ (हे नबी!) क्या आपने बनी इस्राईल के प्रमुखों के विषय पर विचार नहीं किया, जो मूसा के बाद सामने आया? जब उसने अपने नबी से कहाः हमारे लिए एक राजा बना दो। हम अल्लाह की राह में युध्द करेंगे, (नबी ने) कहाः ऐसा तो नहीं होगा कि तुम्हें युध्द का आदेश दे दिया जाये तो अवज्ञा कर जाओ? उन्होंने कहाः ऐसा नहीं हो सकता कि हम अल्लाह की राह में युध्द न करें। जबकि हम अपने घरों और अपने पुत्रों से निकाल दिये गये हैं। परन्तु, जब उन्हें युध्द का आदेश दे दिया गया, तो उनमें से थोड़े के सिवा सब फिर गये। और अल्लाह अत्याचारियों को भली भाँति जानता है।
﴾ 247 ﴿ तथा उनके नबी ने कहाः अल्लाह ने ‘तालूत’ को तुम्हारा राजा बना दिया है। वे कहने लगेः ‘तालूत’ हमारा राजा कैसे हो सकता है? हम उससे अधिक राज्य का अधिकार रखते हैं, वह तो बड़ा धनी भी नहीं है। (नबी ने) कहाः अल्लाह ने उसे तुमपर निर्वाचित किया है और उसे अधिक ज्ञान तथा शारीरिक बल प्रदान किया है और अल्लाह जिसे चाहे, अपना राज्य प्रदान करे तथा अल्लाह ही विशाल, अति ज्ञानी[1] है।
1. अर्थात उसी के अधिकार में सब कुछ है। और कौन राज्य की क्षमता रखता है? उसे भी वही जानता है।
﴾ 248 ﴿ तथा उनके नबी ने उनसे कहाः उसके राज्य का लक्षण ये है कि वह ताबूत तुम्हारे पास आयेगा, जिसमें तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हारे लिए संतोष तथा मूसा और हारून के घराने के छोड़े हुए अवशेष हैं, उसे फ़रिश्ते उठाये हुए होंगे। निश्चय यदि तुम ईमान वाले हो, तो इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी[1] (लक्षण) है।
1. अर्थात अल्लाह की ओर से तालूत को निर्वाचित किये जाने की।
﴾ 249 ﴿ फिर जब तालूत सेना लेकर चला, तो उसने कहाः निश्चय अल्लाह एक नहर द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेने वाला है। जो उसमें से पियेगा वह मेरा साथ नहीं देगा और जो उसे नहीं चखेगा, वह मेरा साथ देगा, परन्तु जो अपने हाथ से चुल्लू भर पी ले, (तो कोई दोष नहीं)। तो थोड़े के सिवा सबने उसमें से पी लिया। फिर जब उस (तालूत) ने और जो उसके साथ ईमान लाये, उसे (नहर को) पार किया, तो कहाः आज हममें (शत्रु) जालूत और उसकी सेना से युध्द करने की शक्ति नहीं। (परन्तु) जो समझ रहे थे कि उन्हें अल्लाह से मिलना है, उन्होंने कहाः बहुत-से छोटे दल, अल्लाह की अनुमति से, भारी दलों पर विजय प्राप्त कर चुके हैं और अल्लाह सहनशीलों के साथ है।
﴾ 250 ﴿ और जब वे, जालूत और उसकी सेना के सम्मुख हुए, तो प्रार्थना कीः हे हमारे पालनहार! हमें धैर्य प्रदान कर तथा हमारे चरणों को (रणक्षेत्र में) स्थिर कर दे और काफ़िरों पर हमारी सहायता कर।
﴾ 242 ﴿ इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को उजागर कर देता है, ताकि तुम समझो।
﴾ 243 ﴿ क्या आपने उनकी दशा पर विचार नहीं किया, जो अपने घरों से मौत के भय से निकल गये[1], जबकि उनकी संख्या हज़ारों में थी, तो अल्लाह ने उनसे कहा कि मर जाओ, फिर उन्हें जीवित कर दिया। वास्तव में, अल्लाह लोगों के लिए बड़ा उपकारी है, परन्तु अधिकांश लोग कृतज्ञता नहीं करते।[1]
1. इस में बनी इस्राईल के एक गिरोह की ओर संकेत किया गया है। 2. आयत का भावार्थ यह है कि जो लोग मौत से डरते हों, वह जीवन में सफल नहीं हो सकते, तथा जीवन और मौत अल्लाह के हाथ में है।
﴾ 244 ﴿ और तुम अल्लाह (के धर्म के समर्थन) के लिए युध्द करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है।
﴾ 245 ﴿ कौन है, जो अल्लाह को अच्छा उधार[1] देता है, ताकि अल्लाह उसे उसके लिए कई गुना अधिक कर दे? और अल्लाह ही थोड़ा और अधिक करता है और उसी की ओर तुम सब फेरे जाओगे।
1. अर्थात जिहाद के लिये धन ख़र्च करना अल्लाह को उधार देना है।
﴾ 246 ﴿ (हे नबी!) क्या आपने बनी इस्राईल के प्रमुखों के विषय पर विचार नहीं किया, जो मूसा के बाद सामने आया? जब उसने अपने नबी से कहाः हमारे लिए एक राजा बना दो। हम अल्लाह की राह में युध्द करेंगे, (नबी ने) कहाः ऐसा तो नहीं होगा कि तुम्हें युध्द का आदेश दे दिया जाये तो अवज्ञा कर जाओ? उन्होंने कहाः ऐसा नहीं हो सकता कि हम अल्लाह की राह में युध्द न करें। जबकि हम अपने घरों और अपने पुत्रों से निकाल दिये गये हैं। परन्तु, जब उन्हें युध्द का आदेश दे दिया गया, तो उनमें से थोड़े के सिवा सब फिर गये। और अल्लाह अत्याचारियों को भली भाँति जानता है।
﴾ 247 ﴿ तथा उनके नबी ने कहाः अल्लाह ने ‘तालूत’ को तुम्हारा राजा बना दिया है। वे कहने लगेः ‘तालूत’ हमारा राजा कैसे हो सकता है? हम उससे अधिक राज्य का अधिकार रखते हैं, वह तो बड़ा धनी भी नहीं है। (नबी ने) कहाः अल्लाह ने उसे तुमपर निर्वाचित किया है और उसे अधिक ज्ञान तथा शारीरिक बल प्रदान किया है और अल्लाह जिसे चाहे, अपना राज्य प्रदान करे तथा अल्लाह ही विशाल, अति ज्ञानी[1] है।
1. अर्थात उसी के अधिकार में सब कुछ है। और कौन राज्य की क्षमता रखता है? उसे भी वही जानता है।
﴾ 248 ﴿ तथा उनके नबी ने उनसे कहाः उसके राज्य का लक्षण ये है कि वह ताबूत तुम्हारे पास आयेगा, जिसमें तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हारे लिए संतोष तथा मूसा और हारून के घराने के छोड़े हुए अवशेष हैं, उसे फ़रिश्ते उठाये हुए होंगे। निश्चय यदि तुम ईमान वाले हो, तो इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी[1] (लक्षण) है।
1. अर्थात अल्लाह की ओर से तालूत को निर्वाचित किये जाने की।
﴾ 249 ﴿ फिर जब तालूत सेना लेकर चला, तो उसने कहाः निश्चय अल्लाह एक नहर द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेने वाला है। जो उसमें से पियेगा वह मेरा साथ नहीं देगा और जो उसे नहीं चखेगा, वह मेरा साथ देगा, परन्तु जो अपने हाथ से चुल्लू भर पी ले, (तो कोई दोष नहीं)। तो थोड़े के सिवा सबने उसमें से पी लिया। फिर जब उस (तालूत) ने और जो उसके साथ ईमान लाये, उसे (नहर को) पार किया, तो कहाः आज हममें (शत्रु) जालूत और उसकी सेना से युध्द करने की शक्ति नहीं। (परन्तु) जो समझ रहे थे कि उन्हें अल्लाह से मिलना है, उन्होंने कहाः बहुत-से छोटे दल, अल्लाह की अनुमति से, भारी दलों पर विजय प्राप्त कर चुके हैं और अल्लाह सहनशीलों के साथ है।
﴾ 250 ﴿ और जब वे, जालूत और उसकी सेना के सम्मुख हुए, तो प्रार्थना कीः हे हमारे पालनहार! हमें धैर्य प्रदान कर तथा हमारे चरणों को (रणक्षेत्र में) स्थिर कर दे और काफ़िरों पर हमारी सहायता कर।
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