﴾ 190 ﴿ वस्तुतः आकाशों तथा धरती की रचना और रात्रि तथा दिवस के एक के पश्चात् एक आते-जाते रहने में, मतिमानों के लिए बहुत सी निशानियाँ (लक्षण)[1] हैं।
1. अर्थात अल्लाह के राज्य, स्वामित्व तथा एकमात्र पूज्य होने के।
﴾ 191 ﴿ जो खड़े, बैठे तथा सोए (प्रत्येक स्थिति में,) अल्लाह की याद करते तथ आकाशों और धरती की रचना में विचार करते रहते हैं। (कहते हैः) हे हमारे पालनहार! तूने ये सब[1] व्यर्थ नहीं रचा है। हमें अग्नि के दण्ड से बचा ले।
1. अर्थात यह विचित्र रचना तथा व्यवस्था अकारण नहीं तथा आवश्यक है कि इस जीवन के पश्चात भी कोई जीवन हो जिस में इस जीवन के कर्मों के परिणाम सामने आयें।
﴾ 192 ﴿ हे हमारे पालनहार! तूने जिसे नरक में झोंक दिया, उसे अपमानित कर दिया और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा।
﴾ 193 ﴿ हे हमारे पालनहार! हमने एक[1] पुकारने वाले को ईमान के लिए पुकारते हुए सुना कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, तो हम ईमान ले आये। हे हमारे पालनहार! हमारे पाप क्षमा कर दे तथा हमारी बुराईयों को अनदेखी कर दे तथा हमारी मौत पुनीतों (सदाचारियों) के साथ हो।
1. अर्थात अन्तिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को।
﴾ 194 ﴿ हे हमारे पालनहार! हमें, तूने रसूलों द्वारा जो वचन दिया है, हमें वो प्रदान कर तथा प्रलय के दिन हमें अपमानित न कर, वास्तव में तू वचन विरोधी नहीं है।
﴾ 195 ﴿ तो उनके पालनहार ने उनकी (प्रार्थना) सुन ली, (तथा कहा किः) निःसंदेह मैं किसी कार्यकर्ता के कार्य को व्यर्थ नहीं करता[1], नर हो अथवा नारी। तो जिन्होंने हिजरत (प्रस्थान) की, अपने घरों से निकाले गये, मेरी राह में सताये गये और युध्द किया तथा मारे गये, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देंगे तथा उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें बह रही हैं। ये अल्लाह के पास से उनका प्रतिफल होगा और अल्लाह ही के पास अच्छा प्रतिफल है।
1. अर्थात अल्लाह का यह नियम है कि वह सत्कर्म अकारथ नहीं करता, उस का प्रतिफल अवश्य देता है।
﴾ 196 ﴿ (हे नबी!) नगरों में काफ़िरों का (सुविधा के साथ) फिरना आपको धोखे में न डाल दे।
﴾ 197 ﴿ ये तनिक लाभ[1] है, फिर उनका स्थान नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है!
1. अर्थात सामयिक संसारिक आनंद है।
﴾ 198 ﴿ परन्तु जो अपने पालनहार से डरे, तो उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। उनमें वे सदावासी होंगे। ये अल्लाह के पास से अतिथि सत्कार होगा तथा जो अल्लाह के पास है, पुनीतों के लिए उत्तम है।
﴾ 199 ﴿ और निःसंदेह अह्ले किताब (अर्थात यहूद और ईसाई) में से कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं और तुम्हारी ओर जो उतारा गया है, उसपर भी, अल्लाह से डरे रहते हैं और उसकी आयतों को थोड़ी थोड़ी क़ीमतों पर बेचते भी नहीं[1]। उनका बदला उनके रब के पास है। निःसंदेह अल्लाह जल्दी ही हिसाब लेने वाला है।
1. अर्थात यह यहूदियों और ईसाइयों का दूसरा समुदाय है, जो अल्लाह पर और उस की किताबों पर सह़ीह़ प्रकार से ईमान रखता था। और सत्य को स्वीकार करता था। तथा इस्लाम और रसूल तथा मुसलमानों के विपरीत साज़िशें नहीं करता था। और चन्द टकों के कारण अल्लाह के आदेशों में हेर फेर नहीं करता था।
﴾ 200 ﴿ हे ईमान वालो! तुम धैर्य रखो[1], एक-दूसरे को थामे रखो, जिहाद के लिए तैयार रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम अपने उद्देश्य को पहुँचो।
1. अर्थात अल्लाह और उस के रसूल की फ़रमाँ बरदारी करके और अपनी मनमानी छोड़ कर धैर्य करो। और यदि शत्रु से लड़ाई हो जाये तो उस में सामने आने वाली परेशानियों पर डटे रहना बहुत बड़ा धैर्य है। इसी प्रकार शत्रु के बारे में सदैव चौकन्ना रहना भी बहुत बड़े साहस का काम है। इसी लिये ह़दीस में आया है कि अल्लाह के रास्ते में एक दिन मोर्चे बन्द रहना इस दुनिया और इस की तमाम चीज़ों से उत्तम है। (सह़ीह़ बुख़ारी)
1. अर्थात अल्लाह के राज्य, स्वामित्व तथा एकमात्र पूज्य होने के।
﴾ 191 ﴿ जो खड़े, बैठे तथा सोए (प्रत्येक स्थिति में,) अल्लाह की याद करते तथ आकाशों और धरती की रचना में विचार करते रहते हैं। (कहते हैः) हे हमारे पालनहार! तूने ये सब[1] व्यर्थ नहीं रचा है। हमें अग्नि के दण्ड से बचा ले।
1. अर्थात यह विचित्र रचना तथा व्यवस्था अकारण नहीं तथा आवश्यक है कि इस जीवन के पश्चात भी कोई जीवन हो जिस में इस जीवन के कर्मों के परिणाम सामने आयें।
﴾ 192 ﴿ हे हमारे पालनहार! तूने जिसे नरक में झोंक दिया, उसे अपमानित कर दिया और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा।
﴾ 193 ﴿ हे हमारे पालनहार! हमने एक[1] पुकारने वाले को ईमान के लिए पुकारते हुए सुना कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, तो हम ईमान ले आये। हे हमारे पालनहार! हमारे पाप क्षमा कर दे तथा हमारी बुराईयों को अनदेखी कर दे तथा हमारी मौत पुनीतों (सदाचारियों) के साथ हो।
1. अर्थात अन्तिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को।
﴾ 194 ﴿ हे हमारे पालनहार! हमें, तूने रसूलों द्वारा जो वचन दिया है, हमें वो प्रदान कर तथा प्रलय के दिन हमें अपमानित न कर, वास्तव में तू वचन विरोधी नहीं है।
﴾ 195 ﴿ तो उनके पालनहार ने उनकी (प्रार्थना) सुन ली, (तथा कहा किः) निःसंदेह मैं किसी कार्यकर्ता के कार्य को व्यर्थ नहीं करता[1], नर हो अथवा नारी। तो जिन्होंने हिजरत (प्रस्थान) की, अपने घरों से निकाले गये, मेरी राह में सताये गये और युध्द किया तथा मारे गये, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देंगे तथा उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें बह रही हैं। ये अल्लाह के पास से उनका प्रतिफल होगा और अल्लाह ही के पास अच्छा प्रतिफल है।
1. अर्थात अल्लाह का यह नियम है कि वह सत्कर्म अकारथ नहीं करता, उस का प्रतिफल अवश्य देता है।
﴾ 196 ﴿ (हे नबी!) नगरों में काफ़िरों का (सुविधा के साथ) फिरना आपको धोखे में न डाल दे।
﴾ 197 ﴿ ये तनिक लाभ[1] है, फिर उनका स्थान नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है!
1. अर्थात सामयिक संसारिक आनंद है।
﴾ 198 ﴿ परन्तु जो अपने पालनहार से डरे, तो उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। उनमें वे सदावासी होंगे। ये अल्लाह के पास से अतिथि सत्कार होगा तथा जो अल्लाह के पास है, पुनीतों के लिए उत्तम है।
﴾ 199 ﴿ और निःसंदेह अह्ले किताब (अर्थात यहूद और ईसाई) में से कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं और तुम्हारी ओर जो उतारा गया है, उसपर भी, अल्लाह से डरे रहते हैं और उसकी आयतों को थोड़ी थोड़ी क़ीमतों पर बेचते भी नहीं[1]। उनका बदला उनके रब के पास है। निःसंदेह अल्लाह जल्दी ही हिसाब लेने वाला है।
1. अर्थात यह यहूदियों और ईसाइयों का दूसरा समुदाय है, जो अल्लाह पर और उस की किताबों पर सह़ीह़ प्रकार से ईमान रखता था। और सत्य को स्वीकार करता था। तथा इस्लाम और रसूल तथा मुसलमानों के विपरीत साज़िशें नहीं करता था। और चन्द टकों के कारण अल्लाह के आदेशों में हेर फेर नहीं करता था।
﴾ 200 ﴿ हे ईमान वालो! तुम धैर्य रखो[1], एक-दूसरे को थामे रखो, जिहाद के लिए तैयार रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम अपने उद्देश्य को पहुँचो।
1. अर्थात अल्लाह और उस के रसूल की फ़रमाँ बरदारी करके और अपनी मनमानी छोड़ कर धैर्य करो। और यदि शत्रु से लड़ाई हो जाये तो उस में सामने आने वाली परेशानियों पर डटे रहना बहुत बड़ा धैर्य है। इसी प्रकार शत्रु के बारे में सदैव चौकन्ना रहना भी बहुत बड़े साहस का काम है। इसी लिये ह़दीस में आया है कि अल्लाह के रास्ते में एक दिन मोर्चे बन्द रहना इस दुनिया और इस की तमाम चीज़ों से उत्तम है। (सह़ीह़ बुख़ारी)
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